...

54 views

भूख और भेद!
पंडाल के भीतर डी.जे. बज रहा था। अमीरज़ादे भर-भर कर पकवान उड़ा रहे थे। पतलें ज़रूरत से ज़्यादा भर ली थीं।खाया न गया तो फेंक दिया। सफाईवाला यंत्रवत पत्तलें उठाकर बाहर कूड़ेदान में डाल रहा था।

पंडाल के बाहर भूखे कुत्ते कूड़े के ढ़ेर में फेंकी गई पतलों से भोजन पाने को आतुर थे या यूं कहें कि चेतावनी भरी गुर्राहट से बता रहे थे कि समीप आने की ग़लती न करना, यह हमारा अधिकार क्षेत्र है।

वहीं बिना बुलाए विरोधी जीव भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे। क्षीणकाय, नंगा शरीर और उलझे बाल किंतु कुत्तों के भयंकर दांतों का सामना करने को बिल्कुल तैयार!

पतलों में जूठा ही सही लेकिन ज़िंदा रहने के लिए अमृत तुल्य भोजन पाना, छीनना बहुत ज़रूरी था।

थोड़ी ही देर में दोनों पक्ष आमने-सामने थे— खूंखार कुत्ते और वस्त्रहीन ग़रीब भूखे अनाथ बच्चे!

आज फ़िर सामाजिक वर्गभेद और भूख युद्ध का कारण बने हुए थे! ज़माने से होता रहा है और होता रहेगा! उफ्फ़ ये अंतहीन भूख और भेद!

—Vijay Kumar—
© Truly Chambyal