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दरारें!

‘जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई’—
इस कहावत का साधारण सा अर्थ यह है कि जिन पांवों में दर्द भरी बिवाईयां (दरारें) होतीं हैं, वही जानता है कि उससे उत्पन्न पीड़ा कितनी असहनीय होती है। जिसके पांवों में कभी भी बिवाई नहीं हुई हो वो दूसरे भुक्तभोगी व्यक्ति के दर्द और पीड़ा को समझ नहीं सकता।

जीवन भर की कमाई लगाकर अपने आशियाने बनाए जाते हैं। कोई व्यक्ति सुबह उठे और उसे मालूम हो कि आदेश पारित हुआ है कि रातों-रात अपना घर खाली कर दीजिए क्योंकि आपकी सुरक्षा को खतरा है, तो सोचिए उसे कैसा महसूस होगा?

पैर जैसी दरारें दिल में हो जाएं तो पीड़ा कैसी होगी, कोई नहीं बता सकता।

मेरी बात, मेरी पंक्तियां आपको बेतुकी, बेसिर-पैर की लग रही होगीं। है ना? तो चलो एक और बेसिर-पैर की बात बताता हूं।

पैरों तले ज़मीन जब खिसकती है तो कैसा लगता है? अजीब सवाल लगा न? हम-तुम कैसे बता पाएंगे? वास्तव में मैंने जो कुछ भी लिखा है, सब फ़िज़ूल है। वजह बताऊं?!

वजह केवल एक है— आप, मैं और वक्त के हुक्मरान जोशीमठ में थोड़ी बसते हैं!

—Vijay Kumar—
© Truly Chambyal