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खामोशी.. या अभिशाप
जब शब्दों की कमी होने लगे और खामोशी अपने अस्तित्व का है। विस्तार करने लगे, तो अक्सर कुछ बेमतलब से सवाल मन के अंदर अंकुरित होने लगते है। परंतु आश्चर्य की बात ये है कि ये सवाल उस व्यक्ति के मन में नही होते, जो खामोश हो गया। बल्कि उन सब के मन में होते है जो इस खामोशी का कारण होते है। छोटी छोटी चोट से तो पत्थर भी एक रोज़ टूट जाता है। किसी का हृदय कितना भी कठोर हो, अपनों के प्रहार को झेल नहीं पाता है।

सच तो ये है कि चोट देने वाला कभी समझ ही नही पाता कि उसके छोटे छोटे कृत्य भी किसी को घायल कर रहे है। किसी भी रिश्ते में जब खामोशी स्थान लेना शुरू करती है, तब उसकी गंभीरता को कोई नहीं समझता । जबकि उस समय वो स्वयम भी टूटने को तत्पर होती हैं। लेकिन नज़रअंदाज़ी उसकी गहराई को अंतहीन कर देती है। धीरे धीरे मन के साथ रूह तक जैसे खामोश हो जाती है। एक जीवित जिस्म दिखाई देता है जो सिर्फ सांस लेता है, लेकिन अब उस पर कुछ असर नहीं करता। ऐसे में भी उसे सबकी अवहेलना सहनी पड़ती है। उस पर बदलने और बेअसर होने के इलज़ाम लगाए जाते है। किसी को भी उसके अंदर उठते तूफानों का अहसास नहीं होता है। पथरायी सी आँखों में रुके समन्दर नहीं दिखाई देते है। फीकी सी मुस्कान में छुपे दर्द को लोग पढ़ ही नहीं पाते है ।

अब ये वो समय आ चुका होता है, जहाँ अब किसी भी बात का असर नहीं होता है, किसी के होने या ना होने से फर्क भी नहीं पड़ता है। मृत जिस्म को तो फिर भी एक संस्कार के द्वारा मुक्ति मिल जाती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति को अपने कांधो पर अपनी ही मृत भावनाओं और कई रिस्ते घावों के अवशेषों को लेकर अंतहीन यात्रा करनी पड़ती है।

अगर आपके परिवार या आस पास कोई ऐसा व्यक्ति है, जो एक अनंत खामोशी की चादर को ओढ़ चुका है या अपनी भावनाओं को व्यक्त ना करके, हर कटुता और अवहेलना को स्वीकार करता जा रहा है, तो सजग हो जाईये, आप उसे खो रहे है और उसके मन और जीवन में विरक्ति की जड़ों को अपनी अवहेलना से सींच रहे है l

त्रुटि के लिए क्षमा 🙏🙏


© * नैna *