...

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वहम
क्या कहूं पता नहीं,
अब तो भरोसा भी नहीं कि तू मेरी है,
शायद बस खेल रही होगी मेरे साथ,
जैसे सब खेलते है मेरे दिल से,
तूने भी शायद उस गंगा में हाथ धो लिए,
मै पागल हर किसी से उम्मीद लगाने लगता हूं,
तुझसे भी लगा बैठा,
ना हैसियत ना औकात है मेरी,
फिर भी सोचा कि शायद तू मुझे चाहती हो,
मुझे अपना बनाना चाहती हो,
जानता तो था कि हम साथ होंगे, ये हो नहीं सकता,
तू मेरी बनकर रहेगी, ये बस वहम है मेरा,
लेकिन ये वहम उतर क्यों नहीं रहा मेरे दिमाग से,
ये समझ नहीं आता,
मै कुछ भी कर के तेरे सिवा किसी और के बारे में सोच भी नहीं पाता,
दुख में भी तुझे याद करता हूं,
जबकि पता है मुझे कि तुझे कोई फरक नहीं पड़ता,
लेकिन फिर भी मै खुद को इस वहम में रखता हूं,
कि तू एक दिन बस मेरी होगी, केवल मेरी ।