डायरी के पन्नो से
प्रिय डायरी,,
कैसी हो तुम, लोग कहते है बेजान हो तुम, तुम्हारें अंदर ह्रदय नहीं है। चलो अच्छा ही है, जो तुम बेजान हो कम से कम तुम इस जिंदिगी की हक़ीक़त से अनजान भी तो हो, कम से कम तुम्हें तो नहीं चखना पड़ता इस ज़हलत-ऐ-जिंदगी का फलसफ़ा। जहाँ अकेलेपन से ज्यादा महफ़िले काटती हो। हर अपने में जहाँ बैठा...
कैसी हो तुम, लोग कहते है बेजान हो तुम, तुम्हारें अंदर ह्रदय नहीं है। चलो अच्छा ही है, जो तुम बेजान हो कम से कम तुम इस जिंदिगी की हक़ीक़त से अनजान भी तो हो, कम से कम तुम्हें तो नहीं चखना पड़ता इस ज़हलत-ऐ-जिंदगी का फलसफ़ा। जहाँ अकेलेपन से ज्यादा महफ़िले काटती हो। हर अपने में जहाँ बैठा...