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अमर प्रेम
क्या बाबू जी अब तो मान लो कि मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं, कब तक यूं मां का फोटो लिए उसे दर दर ढूंढते रहोगे?

आज आठ महीने हो गए पर आप हैं कि मानने को तैयार नहीं की मां…….अपने पिताजी से इतना कहने के बाद प्रभात आगे ना बोल पाया, वह खुद मां का पता लगाना चाहता था पर नियति के आगे बेबस था। वह तो बस अपने पिता रामसरन को इस दुख से बाहर निकालना चाहता था।

थोड़ा रुक कर प्रभात ने अपने बाबू जी से कहा बाबूजी उत्तराखंड त्रासदी में हम अकेले नहीं थे जिन्होंने मां को खोया है, ना जाने कितने घर उजड़ गए, परिवार के परिवार खत्म हो गए बाबूजी।
ईश्वर के आगे किसकी चलती है ? मैं तो इसे भी ईश्वर का आशीर्वाद और चमत्कार ही मानूंगा कि आप हमारे साथ हैं,
आपका आशीर्वाद सदा हमारे सर पर बना रहे। बस अब आप इन जांचवाले लोगों को मां का नाम उन मृत लोगों में लिखवा दीजिए जो उत्तराखंड त्रासदी में से लापता हुए थे।

रामसरन आंखों में आंसूओं का सैलाब लिए किसी तरह उन्हें रोकते हुए अपने बेटे प्रभात से बोला, कैसे मान लूं बेटा मैं और तेरी मां दोनों साथ में ही थे, अच्छे भले बाबा केदारनाथ के दर्शन कर खुशी-खुशी नीचे ...