अरमान (भाग-2)
हर दर्द मैं भूल जाऊं,
खेल खेल में,
मिलती हैं जहां खुशियां,
परियों के भेष में।
यह गाना मोबाइल पर चलाकर अंजना अपने अब 6 महीनेे के बेटे प्रिंस को गोदी में सुला रही थी।2 बज चुके थे।
अंजना के विवाह को अब साढे पांच साल हो चुके थे।डौली को विद्यालय में कक्षा एक में प्रवेश दिला दिया था।उसका विद्यालय में नाम दिव्या रखा गया था।वह छःमाह के पुत्र प्रिंस की मां बन गई थी।पांच वर्ष से अधिक का अंतराल कैसे बीता,पता ही नहीं चला।जिस देवेश को विवाह से पूर्व उसने एक बार विवाह के लिए मना कर दिया था, वही आज उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है।
इन्हीं यादों में वह खोई हुई थी कि दरवाजे पर कालबैल बजी।उसने दरवाजा खोला।सामने देवेश खड़े थे।
देवेश:-क्या बात है, गाना बहुत तेज चला रखा था,बहुत दूर तक इसकी आवाज आ रही थी।कौन से परियों के देश जाना...
खेल खेल में,
मिलती हैं जहां खुशियां,
परियों के भेष में।
यह गाना मोबाइल पर चलाकर अंजना अपने अब 6 महीनेे के बेटे प्रिंस को गोदी में सुला रही थी।2 बज चुके थे।
अंजना के विवाह को अब साढे पांच साल हो चुके थे।डौली को विद्यालय में कक्षा एक में प्रवेश दिला दिया था।उसका विद्यालय में नाम दिव्या रखा गया था।वह छःमाह के पुत्र प्रिंस की मां बन गई थी।पांच वर्ष से अधिक का अंतराल कैसे बीता,पता ही नहीं चला।जिस देवेश को विवाह से पूर्व उसने एक बार विवाह के लिए मना कर दिया था, वही आज उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है।
इन्हीं यादों में वह खोई हुई थी कि दरवाजे पर कालबैल बजी।उसने दरवाजा खोला।सामने देवेश खड़े थे।
देवेश:-क्या बात है, गाना बहुत तेज चला रखा था,बहुत दूर तक इसकी आवाज आ रही थी।कौन से परियों के देश जाना...