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कुछ पल सकूँन के चाहिए ये जिंदगी है अपनी ..... अपने ढंग से चाहिए , जब भी वक़्त मिले खुद के साथ बिताइए , थोड़ा कुदरत से भी प्रीत बढाइये ,
एक रोज़ मेरा मन बहुत घबराया ,
अकेली थी अकेलापन बहुत सताया ,
कोई राह नज़र नही आ रही थी ,
तभी मन मे महाकाल के दर्शन का ख़्याल आया ,
में भी चल दी मिलने उससे
जो परमात्मा है पिता हमारा है ,
चलते -चलते एक रहगुज़र से गुजरी जो मुझे लेकर मेरे शिव तक पहुँची न जाने उस मंदिर में क्या था मेरा व्याकुल मन शांत था उस रोज से ठीक उसी दिन उस रहगुज़र पर में जाने लगी दिल में शिवभक्ति भी गहराने लगी , फिर धीरे -धीरे जैसे जादू सा हुआ मेरी वो रहगुज़र पर मेरा ध्यान गया ,
एक लम्बी गोल मुड़ती सर्पीली सी सड़क थी उसके एक तरफ खूबसूरत झील थी , वही दूजी तरफ थे विशाल पर्वत , और थोड़ा आगे जाने पे एक ऊंचे पर्वत पर माँ अम्बे विराज़ी थी , हर तरफ जिधर नज़र डालो हरियाली थी , बाग -बगीचे , झील के खूबसूरत किनारे , झील में चलती नोकाये , बेहद अनुपम दृश्य थे , अब में हर सोमवार दर्शन को शिव मंदिर जाते कुछ वक्त अपना उस झील पर बिताने लगी ,
धीरे -धीरे कब कुदरत से बेपनाह प्यार हो गया मुझे पता भी ना चला , अब में घण्टो वहाँ बिताने लगी , कभी पेडों से तो कभी पर्वतों से बतियाने लगी , अपने हाल दिल के सुनाने लगी , साथ मे शिव तो थे ही , झील का गहरा पानी , सब मेरी सुनने लगे , मुझे समझने लगे , अब ये रहगुज़र मेरी प्रिय हो गई मेरी हमजोली हो गई , कुदरत मेरी मार्गदर्शक बन गई , झील मेरे हर सुख-दुख की साक्षी हो गई ,
अब जब भी जी घबराता है मुझे वो रहगुज़र ओर मेरे वो कुदरती साथियों का साथ मिल जाता है , में बेहद खुशनुमानियत में जीती हूँ शिव मेरे साथ होते है में उनकी पुत्री बन हँसती खेलती हूँ ये पूरी कायनात मेरी है में इसकी हूं ,
नही अब अकेलेपन से जी घबराता है , ना ही किसी का साथ अब ये दिल चाहता है ,
जीवन मे बस में ओर मेरे शिव और ये सम्पूर्ण कुदरत काफी है ये ही अब मेरी जिंदगानी है ,
मेरी कहानी है ।।
--में शिवपुत्री शिवलिका
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