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भैया मेरे


रिश्तों को शब्दों में समेटना मुश्किल है वैसे ही आपसे मेरा रिश्ता भैया मेरे
सोचती हूँ तो पहुँच जाती हूँ वहाँ, जब मैं चंद पलों की आपकी बाहों में थी,
गोल मटोल, छुई मुई रुई सी, आपकी बाहों में अपनापन महसूस करती थी
कितने प्यार और गर्वित भाई की तरह घंटों मुझे निहारते रहे होंगे भैया मेरे

कभी अपनी गोद से पल भर भी दूर न किया, कितना प्यार दिया होगा भैया मेरे
लगता है जैसे आज मैं ये सब देख रही हूँ, आपकी आँखों की चमक भैया मेरे
कभी मेरे बालों को संवारा होगा, कभी उँगली पकड़ कर चलना सिखाया होगा
कभी रोती हुई मुझे चुप कराया होगा, कभी बाहों को अपनी झूला बनाया होगा

कभी लोरी गा कर नींद को बुलाया होगा, कभी मेरे पेट दर्द को भुलाया होगा
जाने कितनी ही बार अपने सीने में छिपा कर डर को दूर भगाया होगा
जो किसी ने डाँटा तो उसे दूर भगाया होगा, खिलौनों का अंबार लगाया होगा
कभी भाई होकर माँ और पिता की तरह बलाएँ ली होंगी, प्यार लुटाया होगा

कभी घोड़ा बन पीठ पर बिठाया होगा, कभी गुड़िया को चुनरी से सजाया होगा
लड़खड़ाते कदमों को संभाला होगा, कितनी ही बार मुझे गिरने से बचाया होगा
विदा किया होगा तो कलेज़े का हाल किसी से भी नहीं कहा होगा भैया मेरे
बहुत मुश्किल है मेरे लिए आपको चंद शब्दों में बयां करना प्यारे भैया मेरे

कहाँ गया वो प्यार दुलार आपका, क्यों भूले बैठे हैं मुझे अब तक पुकार लो
कितनी आस से देखती हूँ आज भी आपकी तरफ कि हाथ बढ़ा निकाल लो
फँसी जो नैया मंझधार में, आकर एक बार फ़िर हाथ थाम मुझे किनारे लगा दो
पाती बहन के प्रेम की कहीं से भी पढ़ लो, बहती नैन अश्रुधार को विराम दो

कैसे कहूँ कि मेरी आत्मा दिन रात पुकारती है, अंतर से आवाज़ देती रहती है
आओ अब कोई नहीं है जब साथ, आप ही माता और पिता बस यही कहती है
अँखियों से बहता प्यार दिखा पाती, दिल खोल सब बतला जाती भैया मेरे
बहुत हुआ, जा बैठे सात समुंदर पार जो, छूने को तरसते हैं हाथ भैया मेरे

बहुत समय बीत चला, बीते कितने वर्ष दर वर्ष, धीर धरूँ कैसे भैया मेरे
दूर हूँ मजबूरी है, मग़र ये मिलने का इंतज़ार अंतहीन ना कर देना भैया मेरे

🙏🙏💐💐


© सुधा सिंह 💐💐