भैया मेरे
रिश्तों को शब्दों में समेटना मुश्किल है वैसे ही आपसे मेरा रिश्ता भैया मेरे
सोचती हूँ तो पहुँच जाती हूँ वहाँ, जब मैं चंद पलों की आपकी बाहों में थी,
गोल मटोल, छुई मुई रुई सी, आपकी बाहों में अपनापन महसूस करती थी
कितने प्यार और गर्वित भाई की तरह घंटों मुझे निहारते रहे होंगे भैया मेरे
कभी अपनी गोद से पल भर भी दूर न किया, कितना प्यार दिया होगा भैया मेरे
लगता है जैसे आज मैं ये सब देख रही हूँ, आपकी आँखों की चमक भैया मेरे
कभी मेरे बालों को संवारा...