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बीते कितने सावन
आज प्रातःकाल जब नींद खुली तो सूरज की लालिमा मेघों में लुका छिपी कर रही थी| उसी क्षण मेरी स्मृति एकाएक कौंध सी गई | ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह दृश्य मेरे अतीत के बड़े ही मार्मिक पलों को एक बार फिर से वापस बुला रही हो| वास्तव में ऊषा काल में जब बादल सम्पूर्ण धरा को सुरज की किरणों से मुक्त करके बरखा का रूप संवारते हैं तो हमें(मुझे) हमारे उनकी छवि को मन मस्तिष्क में निखार देते हैं क्योंकि कुछ ऐसे ही सावन के दिनों में हम उनके साथ आम के बाग में सैर करने जाया करते थे और वहाँ घंटों बैठकर...