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लकीरों का खेल
लकीरों का खेल
नंदना की शादी बहुत ही धूम-धाम से सम्पन्न हुआ।
नंदना और उसके परिवार वाले इस रिश्ते से बहुत खुश थे। और होते भी क्यों नहीं जान पहचान में ही इतना अच्छा लड़का जो मिल गया था। अनुपम जितना अच्छा देखने में था उतना ही अच्छा लोगों के सामने उसका व्यवहार भी था। कोई कह ही नहीं सकता कि वो ऐसा भी कुछ कर सकता है। नंदना और अनुपम दोनों पति-पत्नी नौकरी करतें थे। नंदना कॉलेज में प्रोफेसर थी तो अनुपम इंजिनियर की पोस्ट पर कार्यरत था। शुरू से ही दोनों पति-पत्नी में ज्यादा कुछ लगाव था नहीं। मगर नंदना ने अपने रिश्ते को बचाने में कोई कसर ना छोड़ी। अनुपम के उटपटांग व्यवहार और उसकी बदतमिजियों को सालों साल बर्दाश्त करती रहीं। सिर्फ इसीलिए कि किसी तरह ये रिश्ता निभता रहें। क्यों कि ये रिश्ता उसके पापा की पसंद थी। नंदना के सब्र का बांध तो तब टूट गया जब अनुपम ने पढ़ा लिखा होते हुए भी जाहिलों सा व्यवहार किया। नंदना को मारा पीटा उसके साथ जोर जबरदस्ती की और जब नंदना ने अपने बचाव में हाथ उठाना चाहा तो उसने जोर जोर से चीखना चिल्लाना शुरू किया और पति पे हाथ उठाने वाली बदनाम स्त्रियों में उसका नाम दर्ज कर दिया। मुहल्ले वालों के सामने अच्छा बनें रहने का वह नाटक उसका आज भी बरकरार रहा।
शुरू शुरू में तो ये कभी कभार होता था।तब नंदना सोचती वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। मगर वक्त के साथ ठीक होने की वज़ह तो दिन प्रतिदिन अनुपम का बरताव नंदना के प्रति बिगड़ता ही जा रहा था।रोज रोज की इस खिट खिट का असर नंदना के काम पे भी पड़ने लगा था।तब अंत में थक हार कर नंदना ने अनुपम से अलग होने का निर्णय लिया और बड़ी मुश्किलों के बाद आखिरकार उसे अनुपम से छुटकारा मिल गया...!!
समाज परिवार दोस्ती रिश्तेदारी सब में खूब बदनामी हुई
नंदना और उसके परिवार की...!! फिर थोड़े दिनों बाद जैसे तैसे माहौल थोड़ा सुधरने लगा कि नंदना की मुलाकात सुरेश से हुई। सुरेश नंदना के जीजा का दोस्त था।जो बेंगलुरु में अक्सर नंदना से मिलने उसके जीजा के साथ आया करता था। नंदना अपने माता-पिता के साथ बेंगलुरु में ही रहती थी और यहीं कार्यरत भी थी। धीरे-धीरे सुरेश और नंदना में दोस्ती बढ़ी।उन दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगता था। और सुरेश जाना पहचाना भी था तो फिक्र की कोई बात नहीं थी। नंदना सुरेश के साथ जीवन के सुनहरे सपने सजाने लगी थी।
अपनी पिछली जिंदगी को भूल कर वो अब आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी। नंदना ने सुरेश को अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सब कुछ बता दी थी।
सुरेश को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
दोनों एक दूसरे को दिल से चाहने लगे थे। एक दूसरे के साथ घुमना फिरना,समय बीताना उन्हें अच्छा लगता था।
इधर दोनों परिवारों के बीच शादी की चर्चा भी शुरू हो गई थी। मगर किस्मत को शाय़द कुछ और ही मंजूर था।
जैसे ही नंदना के बारे में उन्हें पता चला तो सुरेश के माता-पिता ने इस शादी से इंकार कर दिया। जब नंदना के पिता ने कहा अगर तुम दोनों राजी हो इस विवाह के लिए तो मैं कोर्ट में तुम्हारी शादी करवां दूंगा।यह सुन कर नंदना तो प्रसन्न हो गयी मगर सुरेश ने ना कर दिया। सुरेश ने कहा मैं अपने माता-पिता की अनुमति के बिना यह रिश्ता नहीं कर सकता....! और अपने सारे रिश्ते तोड़ कर वो उसी क्षण वहां से चला गया। नंदना ने उसे समझाने की कोशिश की मग़र सारी कोशिशें बेकार गई।नंदना को इस बात का इतना बड़ा सदमा लगा कि वो कयी महीनों तक इस सदमे से उबर नहीं पाई...! अपने माता-पिता के बहाने समझाने पर उसने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की और एक बार फिर से अपनी वहीं पुरानी जिंदगी जीना शुरू कर दिया....!!अपनी आपबीती सुनाते हुए नंदना ने कहा सब लकीरों का खेल है....!!
किरण