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कर्ज (भाग - ३)
(कर्ज भाग २ से आगे)
जब हेमू नेमू ने अपनी आखों से देखा की कर्ज वो बला है जो बिना चुकाए पीछा नहीं छोड़ती है। कर्ज चुकाने के बैल भी बनना पड़ता है। तो दोनो ने पूरी रकम सेठ को वापस चुकाने का निश्चय किया। दोनो ने तेली से विदा लेकर वापस उसी हाड़ेचा गांव की राह ली,जहां सेठ जांवतराज अंगारा रहते थे। देर शाम जैसे तैसे दोनोसेठ जांवतराज अंगारा की चोखट पर पहुंच गए।दोनो आसामियो को इतना जल्दी वापस आया देख ,सेठ चौंके। आपस में अभिवादन का आदान प्रदान होने के बाद,दोनो ने।अपना कर्जा चुकता करने की बात कही।और दस दस हजार रुपयों की दोनो पोटली सेठ के सामने रख दी। सेठ जी ने कर्ज वापस लेने से मना कर दिया। दोनो ने खूब मिन्नते की,पर सेठ जी नही माने।सेठ जी ने दोनो को भोजन कराया।हेमू नेमू ने भोजन किया।फिर वही बात कही,लेकिन सेठजी टस से मस नहीं हुए। दोनो ने सोचा कल दिन में यहां के पंच पटेलों से पंचायत करवाएंगे।और दोनो गांव के मठ की ओर ठहरने के लिए चल दिए।मठ के बाबा ने उनका परिचय पूछ कर,रुकने की अनुमति दे दी।बाबा ने उनसे भोजन को पूछा,तो दोनो ने कहा कि आप के नगर के नगरसेठजी के यहां भोजन कर लिया है। दोनो वहीं बाबा के पास जमीन पर बिस्तर लगा कर सो गए।बाबा जो उनके पास पलंग पर सोए थे,तो हेमू नेमू ने उनसे अपनी समस्या बताई।बाबा से सलाह मांगी कि हम सुबह यहां के पंच पटेलों से न्याय कराना चाहते है। तो बाबा ने बताया कि यह मठ जागिरी मठ है।रोजाना सुबह,हर घर से एक आदमी यहां आता है।सुबह तुम अपनी बात बैठक में बताना।हो सकता है तुम्हारा न्याय हो जाए। दोनो को थोड़ी आशा की किरण दिखाई दी। दोनो सो गए। सुबह हुई। गांव के लोग धीरे धीरे मठ में जमा होने लगे।हर कोम,हर घर का बड़ा आदमी वहां आ चुका था।चाय के दौर चलने लगे।बाबा सब के बीच बड़ी सी रेशम की गादी पर बैठे थे।रैयत उनके सामने जाजम पर बैठी थी।हेमू और नेमू उसी जाजम पर बैठे थे। दोनो खड़े हुए ,और हाथ जोड़कर अपनी समस्या बाबा को संबोधित करते बताई। बाबा ने उनकी बात ध्यान से सुन कर अपने पास ही बैठे नगरसेठ जी से पूछा।आप का क्या कहना है इस संदर्भ में। तब सेठ जांवतराज अंगारा ने अपनी गुलाबी पगड़ी को ठीक किया और खड़े होकर ,कहा कि मेने इनको कर्ज जबरदस्ती नहीं दिया है।कर्ज देने से पहले इनसे कई बार अपनी शर्त बताई थी, कि दिया हुआ कर्ज,वापस में इस जनम में नही लूंगा।उन्होंने मेरी शर्त मान कर कर्जा लिया है।मेरी खाता बही में इनकी निशानी मौजूद है।और अपने मुनीम को घर से बही लाने के लिए भेज दिया।हेमू नेमू बोले, पंच परमेश्वर होते है। पंच बिना किसी का पक्ष लिए,निष्पक्ष न्याय करते है।यह सही है कि,हमने सेठ जी की सब शर्त सुनी।लेकिन तब हमे पता नही था कि कर्ज लेने का दुष्परिणाम क्या होता है।उन्होंने तेली के बेलों की कथा सबको सुना दी। और हाथ जोड़ कर बोले हमने कर्ज शोक मौज के लिए लिया था।लेकिन जब पता चला कि कर्ज नही चुकाने पर बैल बनना पड़ता,तब से हम चाहते कि कर्जा इसी जनम में चुका दे,लेकिन सेठ जी वापस लेने से मना कर रहे है।आप पंच पटेलों से हाथ जोड़ कर अर्ज विनती है कि, आप सेठ जी से कह कर हमे कर्ज से मुक्ति दिलवाए। पंचों से कहा कि आप कोई अबोध बालक नही है। हमारा फैसला है कि आप को कर्ज से मुक्ति अगले जनम में ही मिलेगी।सेठ जांवतराज अंगारा पर यह दबाव नहीं बनाया जा सकता कि वे आप को आज कर्ज मुक्त कर दे,परंतु हां यदि सेठ जांवतराज अंगारा चाहे तो आपको कर्ज मुक्त कर सकते है।
सेठ से साफ मना कर दिया।दोनो हताश निराश होकर वहां से चल दिए। उनको हताश निराश देख कर एक वृद्ध किसान ने कहा कि,सरवाणा चले जाओ,वहां कोई न कोई रास्ता मिल जायेगा।दोनो बीस हजार रुपए की पोटली लेकर वहा से चल पड़े।चलते चलते शाम को वो दूर एक गांव में पहुंचे।उस गांव का नाम सरवाना था। वहां के पंच परमार खेतसिंह अदल न्याय के लिए,प्रख्यात थे।उन्हे लोग इज्जत से वकील सा कहते थे।दोनो पूछते पूछते उनकी कोटड़ी पर पहुंचे। खेतसिंह ने उन्हें कोटड़ी में बुलाया।दोनो ने अपना परिचय देकर,अपनी रामकहानी सुना नी चाही। खेतसिंह ने उन्हें टोकते हुए कहा,
मिल्यां पेहली मनवार, कुशलायत पूछे पछे।
सामप्रत हेक सुथार, लाखो फूलानी लसो।।आप की बात बाद में सुन लेंगे।पहले खाना खा लो। उन्होंने खाना खाया।फिर अपनी बात बताई।पंच खेतसिंह परमार ने कहा,इसका हल सुबह बता दूंगा,अब निश्चिंत होकर सो जाओ।दोनो सो गए।उन्हे कब नींद आ गई पता ही नही चला। सुबह पंच खेतसिंह राठौड़ नहा धो कर अपनी कुलदेवी हरसिद्धि मां के मंदिर गए।पूजा कर के वापस आए।तब तक उनके पोते ने हेमू नेमू को kujचाय नाश्ता करवा दिया। पंच खेतसिंह परमार बोले,सेठ जांवत राज अंगारा ,लिखत को ही मानता है,वह सच्चा आदमी है,किसी से भी नही डरता है।तुम इन रुपयों का उपयोग में कहूं वैसे कर लो।और पूरी युक्ति उन्हे समझा दी।और कहा की इस युक्ति से सेठ इस जनम में तुम्हारा कर्ज चुकता करने से मानेगा। हेमू नेमू बहुत खुश हुए। पंच खेतसिंह परमार द्वारा बताई युक्ति अनुसार चल पड़े।
दोनो ने कई गांवों का दौरा किया,लेकिन कोई उचित जगह नहीं मिली।घूमते घूमते वे समेलपुरा पहुंचे। समेलपुरा गांव में कोई तालाब नही था।वहां के लोग पास के गांव के तालाब से पानी पीते थे। हेमू नेमू ने समेलपुरा गांव के लोगों को इकट्ठा किया। और उनसे कहा कि, हम आप के गांव में तालाब खुदवाना चाहते है। आप हमारा सहयोग कीजिए। गांव में तालाब होने मात्र की कल्पना से सभी गांव वाले खुश हो गए। गांव वाले बोले की हम जो भी आप कहोगे वो पूरा करेंगे। तब हेमू बोला तालाब के लिए हमे पचास एकड़ जमीन की जरूरत है।आप दिलवाओ,हम जमीन को खरीदेंगे।गांव वाले बोले आप को जमीन खरीदने की कोई जरूरत नहीं है,हमारी जमीन यू ही ले लो। नेमू बोला, नही तालाब तो हम हमारी खरीदी हुई जमीन पर ही बनवाएंगे। तब उन्हे 50 एकड़ जमीन दो हजार रुपयों में मोल दे दी।जब पचास एकड़ जमीन अपने नाम हुई तो हेमू नेमू ने गांव वालों से पूछ कर ,तालाब खोदने के लिए अच्छा सा मूहर्त निकलवाया। हेमू नेमू ने मूहर्त वाले दिन गांव वालो से कहा, कि आप तालाब खोदिए,आप को रोजाना मजदूरी दी जाएगी।आदमी औरत और बच्चों की अलग अलग मजदूरी तय की गई। पूरा गांव तालाब खोदने लगा। गांव वालों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। एक तो गांव में तालाब बन रहा था,दूसरा सबको रोजगार मिल गया था। हेमू नेमू उस गांव के लिए भगवान से कम नहीं थे। पूरे गांव ने लगन से काम शुरू किया। छः महीनों की मेहनत से चार बीघा लंबा,तीन बीघा विशाल तालाब खोद दिया गया।तालाब में पानी के आवक के पचास एकड़ की जमीन को आगोर बनाया गया। पचास एकड़ आगोर के चारो तरफ बाड़ बनाई गई।तालाब के ।दो मुहाने पक्के बनाए गए।प्रत्येक मुहाने पर लकड़ी के विशाल दरवाजे बनाए गए। इस पूरे काम में हेमू नेमू के पूरे बीस हजार रुपए खर्च हो गए। गांव के सभी लोग खुश थे।गांव में अपना तालाब जो बन गया था। अब इंतजार था तो भगवान इंद्र के नीचे आने का। आसाढ का महीना आया।जोरदार बारिश हुई। तालाब पानी से लबालब भर गया।गांव वाले बहुत खुश हुए। दूसरे दिन गांव वाले तालाब पर अपनी अपनी मटकियां लेकर पानी लेने आए। उन्होंने देखा दोनो दरवाजों पर वे हाथ में लाठी लिए बैठे है।जब लोग तालाब के अंदर पानी भरने के लिए जाने लगे ,तो उनको रोका और पूछा।
कहां जा रहे हो
पानी भरने और कहा? गांव वाले बोले।
हेमू बोला तुम्हारा इस तालाब के पानी पर क्या हक है। जमीन हमने मोल खरीदी।मजदूरी से तालाब खुदवाया।इस तालाब में जिस जमीन पर ,बरसा पानी इक्कठा हुआ है,वह भी हमारा खरीदा हुआ है। इस लिए आप मुफ्त में यहां से पानी नहीं भर सकते। नेमू बोलो एक मटकी पानी की कीमत पचास रुपए है,जिसको जितनी मटकी पानी ले जाना है,ले जाओ।उतनी ही मटकियां केपचास रुपए के हिसाब से रुपए दो। आपका रुपया,हमारा पानी। पूरा गांव स्तब्ध हो गया। सभी बिना पानी भरे वापस गांव में गए। जो आदमी पूरे गांव के लिए भगवान थे,केवल दो वाक्यों से लालची,और दुष्ट हो गए।पानी की कीमत न उन्होंने पहले कभी सुनी थी और न ही कभी सोची थी। पूरे गांव में चर्चा होने लगी।पानी के मोल की बात एक दम नई थी।गांव के पास अपना तालाब था,परंतु वे एक लोटा भी पानी पी नही सकते थे
गांव में चोपाल लगी।सब ने अपने अपने विचार दिए।बड़े बुजरगो ने कहा, कि इस के पीछे कोई बड़ा राज है।क्या राज है इसका पता लगाना चाहिए।गांव लगभग पचास लोग तालाब पर गए।हेमू नेमू से बात की। बिना मोल दिए गांव वाले पानी का उपयोग कैसे कर सकते है।तब उन्होंने कहा कि यह तालाब हमने नही खुदवाया है।यह तो हाड़ेचा के नगरसेठ जांवतराज अंगारा ने खुदवाया है।हम तो उनके मुनीम है।सेठ जी चाहे तो आप बिना मोल चुकाए।तालाब का उपयोग कर सकते हो। समलपुरा के लोग हाड़ेचा गए। वहां जाकर नगरसेठ जांवतराज अंगारा का घर पूछा तो लोगों ने बताया आम चोहटे में,चबूतरे पीछे सेठ जी की हवेली है। वहां सेठ मिले।उन्हे सारा घटनाक्रम बताया। सेठ जी ने मना कर दिया। कि मैने कोई तालाब नही खुदवाया है। मै केसे कह सकता हूं।लोगों ने वही धरना दे दिया। बात मठ तक पहुंच गई।पूरा गांव सुबह तो मठ में इकट्ठा होता था लेकिन शाम को आज ही इकट्ठे हुए थे। सब ने अजीब वाकया सुना। लोगों ने कहा कि सेठ जी आप ने भले ही तालाब नही खुदवाया,लेकिन जिसने भी खुदवाया है वो आप का नाम ले रहा है।आप को जाकर परमार्थ काम करना चाहिए।लोगों के कहने पर नगरसेठ जांवतराज अंगारा उनके साथ चल दिए।तालाब पर सेठ जी ने देखा,वही दो लोग है,जो उनसे दस दस हजार रुपए उधार ले गए थे।और वापस चुकाने भी आए थे,लेकिन सेठ ने अपनी शर्त के अनुसार वापस लिए नही थे। नगरसेठ जांवतराज अंगारा को देखते ही हेमू नेमू बोले।सेठ जी आप ने रुपए इस जनम में वापस नहीं लिए तो हमने यह तालाब खुदवा दिया।लेकिन जब तक आप हमारा कर्जा चुकता नही करोगे,तब तक हम किसी पक्षी को भी चोंच नही भरने देंगे।नगरसेठ जांवतराज अंगारा के सामने धर्म संकट आ गया।एक तरफ अपनी प्रतिज्ञा थी तो दूसरी तरफ गांव वालों की प्यास।यदि गांव वाले प्यासे रहते तो वे सेठ को बददुआ देते।इसी लिए बहुत सोच विचार कर बोले।हेमू नेमू आप का कर्जा में चुकता करता हूं।हेमू नेमू झट से खड़े हुए और बोले,हमारा कर्जा चुकता हो गया,अब तालाब आप का है।जो चाहे वो करो।नगरसेठ जांवतराज अंगारा ने तालाब का नाम,परम प्रतापी तपोमूर्ति सिद्ध योगी श्री कंचन प्रभ सूरीश्वर महाराज सा के नाम पर "कंचन सागर" रखा और सब के लिए तालाब सुगम हो गया। कर्जा बहुत बुरा है लेकिन उसे नही चुकाना सबसे बुरा है। कर्जे की भयावयता के बारे आशुकवि ओमप्रकाश लटियाल लिखते है,
कई मिनख वडेरा कह गया, कोढ़ रूप है करज।
जनम जनम रहे जिवतो, मिटे चुकाए मरज।।
इति श्री।