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बूढ़ी अम्मा भाग २
घर पहुँचकर उसने पोटली खोली जिसमें दो रोटी
व थोड़ी सब्जी रखी हुई थी।
वैसे सौभ्य कभी किसी का दिया हुआ खाना खाता नहीं था।
लेकिन बूढ़ी अम्मा ने इतने प्यार से दिया था
वो इंकार नहीं कर पाया।
खाना खाने में बहुत ही स्वाद था।
उसने सोच लिया कल बूढ़ी अम्मा से उसके खाने की अवश्य तारीफ करूँगा।
वो तैयार हो ऑफिस जाने लगा।
गाड़ी में वो उस बूढ़ी अम्मा के बारे में ही सोच रहा था।
पता नहीं उसका उनके प्रति कैसा आकर्षण था जो
सौभ्य को सोचने के लिए मजबूर कर देता था।
ऑफिस में भी उसका मन नहीं लग रहा था।
शाम को ऑफिस से आने के बाद सौभ्य थोड़ी देर के लिए लेट गया।
दूसरे दिन रोजमर्रा की तरह पार्क गया वहाँ आज
उसे बूढ़ी अम्मा कहीँ दिखाई नहीं दी।
उसने आसपास के लोगों से पूछा।
सभी ने कहा आज तो हमने भी उसे देखा नहीं।
अब वो सोचने लगा काश उस बूढ़ी अम्मा के घर का पता ले लेता।
फिर सोचने लगा आखिर रिश्ता क्या है मेरा उनका।
न जाने सड़क के किनारे कितने ही लोग फेरी लगाते हैं। लेकिन इस अम्मा पे न जाने क्यों ध्यान खींच रखा है।
पता नहीं क्यों बूढ़ी अम्मा को देखे बिना चैन नहीं आता है।
क्या सच में किसी पूर्वजन्म का कोई रिश्ता है।
वो अनमना सा अपने घर की और चल दिया।
ऑफिस में सभी कर्मचारी उससे पूछ रहे थे, वो उदास क्यों है।
उसने किसी से कुछ नहीं कहा उसे पता था उसकी
बातें सुन सभी उसपर हँसेंगे।
दो तीन दिन हो गए थे सौभ्य को पार्क जाते हुए
लेकिन बूढ़ी अम्मा नहीं आई।
ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी उसे
आवाज़ आई बेर ले लो ...
बेर ले लो ....
सौभ्य ने बाहर झाँका उसे कोई नज़र नहीं आया।
आवाज़ वो बूढ़ी अम्मा की बहुत अच्छी तरह से पहचानता था।
ये आवाज़ उसे बूढ़ी अम्मा की नहीं लगी।
ऑफिस जाते समय उसे रास्ते में भीड़ सी दिखी।
उसे ऑफिस जाने में देर हो रही थी।
वो गाड़ी खड़ी करके भीड़ छटने का इंतजार करने
लगा।
भीड़ की वजह से लम्बा जाम लगा हुआ था।
काफी इंतज़ार करने के बाद वो भीड़ की तरफ गया।
पता लगाने के लिए माज़रा क्या है।
तभी एक आदमी कहने लगा आजकल लोग बड़े बुढ़ों को सड़क पे मरने के लिए छोड़ देते हैं।
दिखाई विखाई देता नहीं इसलिए एक्सीडेंट होते रहते हैं।
सौभ्य ने जाकर देखा एक बुढ़िया ओन्धी पड़ी कराह रही थी।
कोई कह रहा था लग रहा है कोई भीख माँगने वाली है।सौभ्य ने जाकर देखा तो हैरान हो गया।
ये तो वही बूढ़ी अम्मा थी जिसकी उसे तलाश थी।
लोग उसे हाथ लगाने से रोकने लगे कहने लगे।
हमने पुलिस को इत्तिला कर दी है।
सौभ्य ने अम्मा को गोदी में उठा अस्पताल पहुँचा
डॉक्टरों को ईलाज करने के लिए कहा तो वो
भी कहने लगे ये तो पुलिस का केस है।
अगर इन्हें कुछ हो गया तो क्या आप जिम्मेदारी लेंगें
सौभ्य को अम्मा के बारे में पता था इसलिए उसने
झट हामी भर दी।
अम्मा के घर से कोई नहीं आया।
अम्मा से घर का पता पूछते भी तो कैसे पूछते वो तो बेहोश पड़ी हुई थीं।
सौभ्य उसके होश में आने का इन्तज़ार कर रहा था।
डॉक्टर कमरे से बाहर निकल कर कहते हैं।
आप इन्हें घर ले जा सकते हैं।
इनकी आवाज और यादाश्त दोनों चली गई है।
क्या पता ईश्वर का कोई चमत्कार ही हो जाए।
पुलिस का तो कहीं अता पता ही न था।
शायद किसी ने इत्तला ही नहीं की थी।
सौभ्य धर्म संकट में था करे तो क्या करे।
उसने निश्चय कर लिया अम्मा को वह अपने घर लेकर जाएगा।
अस्पताल के सभी कागज पत्रों पे साइन कर अम्मा को वो अपने घर ले आया।
उसने अम्मा की सेवा के लिए
एक असिस्टेन्ट भी रख लिया था।वो ही उसे नहलाती सुन्दर साफ कपड़े पहनाती।
एक हफ्ता बीत गया सौभ्य को अम्मा की सेवा करते हुए।
अम्मा अब पहले से स्वस्थ लगने लगीं थी।
आज अस्सिटेंट ने बताया कोई बेर वाली बेर ले लो ...बेर ले लो ..की आवाज लगाती है।
उस समय अम्मा खिड़की की तरफ इशारा करती हैं।
सौभ्य क्या....
© Manju Pandey Choubey