सुकून
सर्दियों की रातें कितनी लंबी होतीं हैं। बारिश सी गिरती ओस को रोड लाइट के सहारे सिया एक टक देखे जा रही थी तभी पीछे से दीदी ने आवाज़ लगाई " चल सोजा जाके रात बहुत हो गयी है कल ऑफिस नही जाना क्या।" सिया के चेहरे पर अजीब सी उदासी छायी थी, ये दिसंबर का महिना भूल कर भी भूल नही पाती हुँ चार साल होगये इस बात को और लगता हैं कल ही की बात है।
सिया के पापा के गुजर जाने के बाद सिया और उसकी माँ दोनों भोपाल छोड़ कर ईलाहाबाद अपने पुराने घर आ गये थे ज्यादा तर रिश्तेदार भी यही थे तो थोड़ा अकेलापन नही लगता था और दीदी भी यही नौकरी करती थी तो हम सब साथ ही रहते थे।
सिया एक फार्मेसी कंपनी मे एम्प्लॉयी थी। इलाहाबाद आकर बहुत बदल गयी थी सिया या हालातो ने बदल दिया। सब कुछ तो छुट गया था दोस्त कॉलेज की कैंटीन, सिटी पार्क, उज्जैन की ट्रिप आशीष। अतीत से लौट कर आयी तो खुद को बिस्तर पर पाया सिया ने। आशीष जिसे न चाहते होए भी दूर होना पड़ा ।...
सिया के पापा के गुजर जाने के बाद सिया और उसकी माँ दोनों भोपाल छोड़ कर ईलाहाबाद अपने पुराने घर आ गये थे ज्यादा तर रिश्तेदार भी यही थे तो थोड़ा अकेलापन नही लगता था और दीदी भी यही नौकरी करती थी तो हम सब साथ ही रहते थे।
सिया एक फार्मेसी कंपनी मे एम्प्लॉयी थी। इलाहाबाद आकर बहुत बदल गयी थी सिया या हालातो ने बदल दिया। सब कुछ तो छुट गया था दोस्त कॉलेज की कैंटीन, सिटी पार्क, उज्जैन की ट्रिप आशीष। अतीत से लौट कर आयी तो खुद को बिस्तर पर पाया सिया ने। आशीष जिसे न चाहते होए भी दूर होना पड़ा ।...