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कासव
जानकी तैयार होते हुए मानव से कहती है..
"आज सारी रात हमें बीच पर ही रुकना पड़ेगा...
क्योंकि कछुए आज ही अंडे देने वाले हैं।"
मानव: आप पर्यावरणविद हैं या कोई वानिकी
या प्रकृति संबंधी कार्यकर्ता?
जानकी: मैं इनमें से कुछ भी नहीं हूं...
मानव: तो आप कछुओं के लिए क्यों काम करती हैं?

जानकी: ये जो कछुए हैं ना... ये डायनासोर से भी पुराने हैं। ये अपना पूरा जीवन पानी में ही गुज़ार देते हैं, बाहर आते हैं तो केवल अंडे देने के लिए।
अब क्योंकि ये अधिक समय तक पानी से दूर नहीं रह सकते इसलिए ना चाहते हुए भी मादा कछुआ अपने बच्चों को देखे बगैर ही समुद्र में लौट जाती हैं। कुछ दिनों में रेत की ताप से ये कछुए अपने खोल से बाहर निकलते हैं और धीरे -धीरे समुद्र में पहुंच जाते हैं।

जानते हो मानव... पहले मैं अमेरिका में रहती थी। वहां 16 साल की उम्र में मेरे बेटे ने घर छोड़ दिया और पति को व्यवसाय के अलावा कुछ नहीं सूझता था। वहां मुझे अपने बड़े से घर में घुटन होने लगी। इसलिए मैं भारत लौट आई। लेकिन यहां भी माता -पिता की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। एक भाई साथ रहता था, लेकिन वो भी अजनबियों की तरह। मैं इतनी अकेली पड़ चुकी थी कि किचेन में चाकू से काम करते समय मुझे कलाई की नस काटने के विचार आते थे और ट्रेन देखते समय उसके आगे कूद कर जान देने के। ऐसे में एक दिन हिम्मत कर मैं ख़ुद साइकोलॉजिस्ट के पास गई। कुछ दवाइयों और काउंसलिंग सेशन के बाद मुझे ये बात समझ आई कि हमारे आस -पास एक बड़ी सी दुनिया है। अगर इन्हें परिवार मान इनके लिए काम किया जाये तब भी तो हमारा अकेलापन कम हो सकता है ना? प्रकृति को परिवार मान लेने के बाद मन में आत्महत्या या इस तरह के नकारात्मक विचार अपने आप आने बंद हो जाते हैं।
अब क्योंकि इंसान का पेट कुछ भी खाकर तृप्त नहीं होता इसलिए लोग अब कछुओं के अंडे भी खाने लगे हैं... इसीलिए मैं उन अंडों की रखवाली के लिए जाती हूं।

जानते हो मानव... समुद्र में मिलने वाले हर बच्चे को मादा कछुआ मां समान ही प्रेम करती है क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि उसका बच्चा इनमें से कौन है। ये कहते हुए जानकी मानव को टुकुर -टुकुर देख रही थी मानों मानव में अपने गुमशुदा बेटे का चेहरा ढूंढ रही हो।
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Note:
यहां लिखा गया सीन मराठी फिल्म kaasav से है।

© Neha Mishra "प्रियम"
29/07/2022