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चिट्ठी

लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी।

निकिता को उस चिट्ठी का बहुत इंतजार था।ये चिट्ठी उसके पति की थी। निकिता और उसका पति राम काफी समय से अलग रह रहे थे। दोंनो के बीच घरवालों के पीछे झगड़ा हो गया था।जिसकी वजह से राम ने निकिता को थप्पड़ मार दिया था।गुस्से में आ कर निकिता ने घर छोड़ दिया था।

तब से वे दोंनो अलग रह रहें थे। इतने सालो बाद आखिरकार राम ने निकिता की सहेली सुप्रिया के घर चिट्ठी भेजी थी। सुप्रिया ने चिट्ठी निकिता को दी। निकिता चिट्ठी लेकर घर आ गई।

जल्दी से उसने चिट्ठी को खोला और पढ़ने लगी।
"मेरी निकिता , कितने साल बित गए पर तुमने मुझसे बात करने की कोशिश नहीं की।आज मैं ही हिम्मत करके तुम्हें यह चिट्ठी लिख रहे हूं।मैं जानता हूं मेरी गल्ती थी।मुझे तुम पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था।

उस वक्त गुस्से में जो हमारे बीच हुआ ।उसका असर सिर्फ हम दोंनो की जिंदगी पर पड़ा। तुम्हारे बिना अकेले रहकर मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना अकेला हूं। तुम जानती हो मैंने बहुत कोशिश की झगड़े को खत्म करने की पर हमारे घरवाले नहीं चाहते की हम एक हो।तभी तो छोटी सी लड़ाई हमारे रिश्ते को यहाँ तक ले आई।

निकिता हमारा रिश्ता हम दोंनो ने जोड़ा था और इस से खत्म भी हम दोंनो ही करेंगे। पर मैं ये रिश्ता खत्म नहीं करना चाहता। हो सके तो इस रिश्ते को एक और मौका दे कर देखो। तुम जानती हो ।मैं तुम्हें रोज याद करता हूँ तुम्हारी कसम।

निकिता चिट्ठी पढ़कर रोने लगी और राम को याद करके जोर जोर से रोने लगी। तभी पीछे से आवाज़ आई। सॉरी निकिता ने पीछे मुड़कर देखा।वो आवाज़ किसी ओर की नहीं राम की थी।निकिता झट से राम के गले लग गई। ओर दोंनो के दूसरे से माफ़ी मांगने लग गए। ओर एक बार फिर प्यार की जीत हुई।
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