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राजा हंबीर मल्ल: साहस, नेतृत्व, और समृद्धि की कहानी
मुंडमाला घाट का युद्ध, जो 1575 ई. में मुंडमाला गढ़ किले के पास हुआ, एक महत्वपूर्ण इतिहासिक घटना है जो भारतीय इतिहास की गौरवशाली पन्नों में एक है। इस युद्ध का अद्वितीय पृष्ठ नाटकीय रूप से बिखरता है, जहां मल्लभूम की नीतिगत बुद्धिमत्ता और हंबीर मल्ल की वीरता ने एक पूरे राज्य की भव्यता की राह में आधार बनाया।

इस कथा का प्रारंभ हुआ जब दाउद खान कर्रानी, एक पठान सेनापति, ने बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ बिष्णुपुर पर हमला किया। यह उसकी आक्रमणकारी सोच का परिचायक था, जो बंगाल पर कब्ज़ा करने का सपना देख रहा था। समर्थन की कमी में बिष्णुपुर सेना शर्मिंदा थी, और उस समय हंबीर मल्ल ने सेना को सुसज्जित करके युद्ध का सामना किया।

बिष्णुपुर के राजकुमार हंबीर मल्ल ने अपनी सेना के साथ युद्ध की तैयारी करते हुए वीरता और साहस का प्रतीक बनते हुए दिखाई दिया। मल्लभूम सेना के नेतृत्व में, उन्होंने बिष्णुपुर को युद्ध के लिए तैयार किया और उनकी शक्तिशाली सेना ने दाउद खान की सेना पर हमला किया।

युद्धक्षेत्र में हुए अत्यंत भयंकर संघर्ष के बाद, हंबीर मल्ल ने दाउद खान की सेना को पूरी तरह से हराया। यह विजय बिष्णुपुर के लोगों के लिए एक अत्यंत संगर्भी और गर्वपूर्ण क्षण था, जिसने उन्हें उनके वीर नेता हंबीर मल्ल की शीर्षक प्राप्त कराई।

युद्ध के पश्चात्, मल्लभूम ने अपने वीर सैनिकों के साथ मिलकर एक ऐतिहासिक पल को स्वीकार किया। मुंडमाला गढ़ के प्रवेश द्वार पर मृत सैनिकों की लाशों से भरी जमीन ने इसे "मुंडमाला घाट" कहलाया। इस घाट की स्थिति ने विजय की अद्वितीयता को और भी चर्चाओं का विषय बना दिया।

कहते हैं कि हंबीर मल्ल ने इस युद्ध में पठान सैनिकों के सिरों को काटकर, एक माला बनाई और उसे राक्षस-संहारक देवी मृण्मयी देवी को उपहार के रूप में चढ़ाया। इस अद्वितीय प्रक्रिया ने हंबीर मल्ल को "बीर हंबीर" के नाम से सम्मानित किया गया। उनकी वीरता और नेतृत्व ने बिष्णुपुर को सुरक्षित और समृद्धि में भरपूर बना दिया।

मुंडमाला घाट का यह युद्ध एक महत्वपूर्ण सच्ची कहानी है जो हंबीर मल्ल की बहादुरी और धैर्य को प्रमोट करती है। इसके माध्यम से हम देखते हैं कि एक साहसी और संगर्भी नेता कैसे अपने लोगों की रक्षा करने के लिए हर मुश्किल को पार कर सकता है और एक पूरे स्मराज्य को विजयी बना सकता है।

यह युद्ध बिष्णुपुर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धारा में एक नया अध्याय जोड़ता है और इसे विभिन्न पीढ़ियों को सिखने और गर्वित होने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। हंबीर मल्ल की शौर्यगाथा आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति आत्मनिर्भर और समर्थ बनाए रखने का संदेश देती है।

इस प्रेरणादायक घटना ने बिष्णुपुर की भूमि को एक वीर नेता की जननी बना दिया और उसने अपने प्रजा के साथ मिलकर समृद्धि, खुशहाली, और समरसता की दिशा में कदम से कदम मिलाकर चलने का आदर्श स्थापित किया।

इसी तरह से, मुंडमाला घाट का युद्ध न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह एक उत्कृष्टता की कहानी है जो हमें साहस, समर्पण, और नेतृत्व के महत्वपूर्ण सिख सिखाती है। यह हमें यह याद दिलाता है कि अगर हम साथ मिलकर, सहयोग करके, और धैर्य रखकर समस्त चुनौतियों का सामना करें, तो हम भी अपने लोगों और समृद्धि की ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकते हैं।
© Pradeep Parmar