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बचपन का टूटता गुल्लक!
दहेज के पैसे गिने जा रहे थे। पैसे शायद कम पड़ रहे थे। परिवार वालों के चेहरे पर शिकन थी। एक छोटी बच्ची, जो वहीं पास में यह नजारा देख रही थी, अचानक दूसरे कमरे में गई और उठा लाई अपना गुल्लक। वही गुल्लक जिसे वह महीनों से भर रही थी। वह गुल्लक भर रही थी ताकि अगले बर्थडे पर वह अपनी मनपसंद गुड़िया खरीद सके। कुछ ही दिन शेष थे उसके जन्मदिन में, फिर भी वह बिना कुछ सोचे-समझे वह गुल्लक ले जाकर अपने पिताजी को दे देती है और कहती है, "पापा, आप गुल्लक तोड़ कर पैसे निकाल लो और दीदी का दहेज पूरा कर दो।"

उस छोटी सी मासूम बच्ची को नहीं मालूम था कि...