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पुण्यतिथि -पंडित जवाहर लाल नेहरु
मई 27 पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि है जो भारत के प्रथम प्रधान मंत्री थे. महात्मा गाँधी के तीन विश्वास पात्रों सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, में से एक थे.
समय समय पर वल्लभभाई पटेल से नेहरु की वैचारिक टकराहट होती रहती थी.
दोनों के स्वभाव में कुछ विरोधाभास था.ब्रिटेन में प्रवास के दौरान नेहरु मूँछ रखते थे, अच्छे कपड़े पहनते थे, और मस्त रहा करते थे. पटेल शांत और गंभीर रहते थे, हुक्का छोड़ सिगरेट पीते थे, कभी महंगे रेस्टोरेंट में नहीं जाते थे.
तो दोनों महापुरुषों के जीवन में बहुत सारी समानतायें भी रही है. दोनों ने क़रीब क़रीब एक ही समय लंदन से क़ानून की पढ़ाई पूरी की. दोनों म्युनिसिपल प्रेसिडेंट साथ -साथ चुने गये. नेहरु इलाहबाद के. और पटेल अहमदाबाद के म्युनिसिपल प्रेसिडेंट चुने गये.
पटेल के कार्य की कलेक्टर जे एच गइरेट ने खूब प्रशंसा की. पटेल ने सारे विभाग को उत्साह से भर दिया था.
दूसरी ओर नेहरु पूरे जोश खरोश कोरपोशन के कार्य में लगे थे, जिससे सहकर्मी और राज के पदाधिकारी उनसे प्रसन्न थे. लेकिन इनकी कार्यशैली अलग थी.नेहरु शिक्षा, सफाई, वैश्यावृति आदि मुद्दों पर ज्ञापन पर ज्यादा यक़ीन करते थे. पटेल जगह जगह प्रतिनिधियों को भेज कर समस्या के निपटारे में विश्वास करते थे.
बीस के दशक में जब दोनों कारपोरेशन के अध्यक्ष थे तब उन्हें पता नहीं था कि एक दिन दोनों देश का नेतृत्व करेंगे.
मोतीलाल के बाद जब कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव की बात आई तो पटेल प्रमुख दावेदार थे. पांच प्रदेश कांग्रेस कौंसिल पटेल के पक्ष में थे, तीन नेहरु के पक्ष में थे. गाँधी पटेल को अध्यक्ष के रूप में देखना नहीं चाहते थे यद्यपि पटेल उनके करीबी थे. गाँधी के कहने पर पटेल ने नाम वापस ले लिया.नेहरु के चुनाव के पीछे गांधी का तर्क था -नेहरु युवाओं और महिलाओं को एकजुट करने में सक्षम थे. उनका मानना था इस ज़िम्मेवारी से नेहरु में परिपक्वता आयेगी, सूझबूझ बढ़ेगी. उन्हें विश्वास था कि नेहरु उनके दृष्टिकोण को तरजीह देंगे. नेहरु का पद पर होना मेरे स्वयं के पद पर होने के समान है, ऐसा गांधी मानते थे.अब्दुल कलाम आज़ाद का भी मानना था कि मुस्लिम युवको को नेहरु प्रभावित कर सकते है.
आचार्य कृपलानी का मानना है कि गाँधी भावनात्मक रूप से नेहरु के क़रीब थे. कुछ लोग मानते है कि पटेल पर गांधी का भरोसा ज्यादा था वो किसी हाल में गाँधी से दूर नहीं जा सकते थे. गाँधी जी उस गरेड़िया की तरह थे जो भटके हुए भेड़ के पीछे जाते थे.यह भी जानना रुचिकर होगा कि कुछ लोग गाँधी पटेल को भाई-भाई के रूप में देखते है तो गाँधी नेहरु को पिता पुत्र के रूप में. और नेहरु खुद को गांधी का भटका हुआ पुत्र मानते थे.
कांग्रेस के लखनऊ सेशन में पटेल और नेहरु के बीच जमकर विवाद हुआ था जिस पर नेहरु ने कहा था हमारे सहमति के मुद्दे बहुत थे बस कुछ बिंदुओं पर मत भेद था.
महात्मा गाँधी पटेल के ऊपर नेहरु को वरीयता इस लिए देते थे कि नेहरु पटेल से ज़्यादा लोकप्रिय थे. दूसरा कारण था उम्र और स्वास्थ्य.पटेल नेहरु से चौदह साल बड़े थे.
गाँधी जी ने कहा था कि नेहरु को अंतर्राष्ट्रीय विषय की समझ उनसे और पटेल से ज़्यादा थी.पटेल के बनिस्बत
नेहरु के विदेश में संबंध ज्यादा थे.कई मुद्दों पर अलग विचार होने के बावजूद दोनों राष्ट्वादी नेता थे.
नेहरु की रूचि कविता, कला, संगीत और थिएटर में थी, लेकिन पटेल का दिमाग़ एक तेजधार चाकू की तरह था जिसका देश के लोगों में गहरी अभिरूचि थी.
स्वतंत्रता जब निश्चित लगने लगी, तब बंटवारे पर नेहरु और पटेल 1947 के आरम्भिक आठ महीनो में एक साथ दिखने लगे जैसा पहले कभी नहीं दिखें. भारत के पहले कैबिनेट का गठन दोनों ने मिल कर किया. जिसमें पटेल के पक्षधर पांच लोग थे जबकि नेहरु के मात्र दो. भारत विभाजन के बाद उपजी हिंसा ने पटेल और नेहरु दोनों को आंदोलित किया.
कश्मीर मामले को ले के दोनों में काफ़ी कड़वाहट आ गई.
गाँधी को भेजे पत्र में पटेल लिखते है -अगर सरकार से कोई विदा होगा तो वो मैं होऊंगा. मैंने काफ़ी काम कर लिया है, प्रधानमंत्री सर्वमान्य नेता है और युवा भी है. मुझे संदेह नहीं कि नेहरु आपके पसंद होंगे. नेहरु को पद छोड़ने की जरूरत नहीं है.
दोनों पद त्यागने के लिए तत्पर थे. पटेल कश्मीर मामले को यू एन ले जाने के पक्षधर नहीं थे लेकिन नेहरु नहीं माने, गाँधी ने बिना मन के सहमति दे दी.
गांधी की हत्या होने पर पहले पटेल पहुंचे और फूट फूट कर रो रहे थे, पटेल गाँधी के पाँव के पास बैठे थे. जब नेहरु आये तो गांधी के सर पे सर रख कर बच्चें की तरह बिलख रहे थे, फिर पटेल के गोद में सर रख कर रोते रहे.
14, नवंबर 1948को नेहरु के जन्म दिन पर पटेल ने कहा था. "महात्मा गाँधी ने नेहरु को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. गाँधी की मृत्यु के बाद मैं महसूसता हूँ यह निर्णय सही था "
जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "

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