एक स्त्री...
एक स्त्री का अधिकार हैं श्रृंगार करना, खुद को संवारना पर ये समाज उसे गलत नजरों से देखेगा और अपनी जिव्हा से जहर उगलता रहेगा।
क्या जरूरी हैं स्त्री का पति घर हों वो तभी खुद को सजाएं, संवारे....?,
क्या उसे अधिकार नहीं की वो खुद के लिए श्रृंगार करे खुद से वो प्यार करे..?
आख़िर कहा लिखा हैं ये की खुद से प्रेम करना गलत हैं, खुद को संवारना पाप हैं।
यहां एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की दुश्मन बनी हैं।
क्या हम खुल कर जी नही सकते,खुद से प्रेम नही कर सकते और अगर कोई स्त्री खुद से प्रेम करती हैं सजती संवरती है तो उसे शक की निगाह से देखा जाता हैं और उसे चरित्रहीन समझा जाता हैं,
देश बढ़ रहा पर छोटी मानसिकता और दोगले किस्म वाले आज भी हमारे आस पास पनप रहे और वही लोग हमारे समाज में मौजूद हैं जो खोखली बातों का आडंबर रचते रहते हैं।
© Pooja Sharma (Janu)
क्या जरूरी हैं स्त्री का पति घर हों वो तभी खुद को सजाएं, संवारे....?,
क्या उसे अधिकार नहीं की वो खुद के लिए श्रृंगार करे खुद से वो प्यार करे..?
आख़िर कहा लिखा हैं ये की खुद से प्रेम करना गलत हैं, खुद को संवारना पाप हैं।
यहां एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की दुश्मन बनी हैं।
क्या हम खुल कर जी नही सकते,खुद से प्रेम नही कर सकते और अगर कोई स्त्री खुद से प्रेम करती हैं सजती संवरती है तो उसे शक की निगाह से देखा जाता हैं और उसे चरित्रहीन समझा जाता हैं,
देश बढ़ रहा पर छोटी मानसिकता और दोगले किस्म वाले आज भी हमारे आस पास पनप रहे और वही लोग हमारे समाज में मौजूद हैं जो खोखली बातों का आडंबर रचते रहते हैं।
© Pooja Sharma (Janu)
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