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सच्चा गुरु कौन है ।
धर्मग्रंथों व शास्त्रों ने सदैव गुरु को महत्व दिया है । इस संसार में गुरु से श्रेष्ठ पदवी किसी को प्राप्त नहीं है । जीवन में परमात्मा के अतिरिक्त कोई पूर्ण नहीं है । इसीलिए गुरु जिसे परमात्मा का रूप कहा जा सकता है उसका जन्म होता है । हर मनुष्य में कुछ गुण होते हैं जो एक दूसरों से भिन्न होते है । इसीलिए जैसे गुण चाहिए वैसे गुरु का सेवा करो और फल प्राप्त करो । किंतु कौन वास्तिक रूप से गुरु है । गुरु वह है जो निस्वार्थ भाव से किसी को शिक्षा देता है । गुरु अपने किसी भी शिष्य के साथ भेदभाव नही करता । उसके लिए विद्या श्रेष्ठ होता है । जो गुरु स्वार्थ हेतु शिक्षा देता है वह गुरु कैसा । गुरु का जन्म ही परोपकार के लिए हुआ है कुछ लेने के लिए नहीं । गुरु वरदान है ,गुरु धन है , गुरु शिष्य का मान है , गुरु वैभव है। अभी तक तो गुरु का अर्थ समझ आ गया किंतु वास्तविक गुरु कौन है अर्थात सच्चा गुरु कौन है । वह गुरु जिसने विद्या अर्जित स्वार्थ हेतु नही किया किंतु सभी को उत्कृष्ठ बनाने के लिए सदैव तत्पर रहा ऐसा गुरु जिसे प्राप्त हो उसे स्वर्ग की क्या कामना । इस संसार में सभी पुरुष एवं स्त्री स्वार्थ हेतु ईश्वर की उपासना करते हैं किंतु गुरु स्वार्थ के जगह सभी के परोपकार का आशीर्वाद मांगता है । सच्चा गुरु अभिमान का आभूषण धारण नही करता । सच्चे गुरु के लिए विद्या की कोई कीमत नहीं होती । वह विद्या देता अवश्य है परंतु यह शास्त्रों का विधान है की शिष्य को गुरुदक्षिणा अवश्य देना चाहिए । सच्चा गुरु भागवत प्राप्ति तो चाहता ही है पर अपने शिष्य को भी साथ ले जाना चाहता है। सच्चा गुरु ज्ञानियों की तुलना करता । ऐसा गुरू संत ही है । इंद्रलोक का महत्व इन संतो के सामने शून्य है । इन संतो ने हो तीनों लोको को पवित्र किया है । हम भाग्यशाली है की इन्ही संतो का जन्म पृथ्वीलोक पर हुआ है । किंतु संत नाम का उपयोग तो आज स्वार्थी एवं कपटी लोगो ने भी शुरू कर दिया है । जो भागवत प्राप्ति का ज्ञान ढोंग करके धन हेतु कर रहा है वह गुरु नही असुर है । कलियुग ऐसे ही स्वार्थी लोगो से भरा है जहा लोगो के आस्था का मज़ाक बन गया है । आज इन्ही लोगो ने मनुष्य को नास्तिक बना दिया है । ऐसे में मनुष्य किसे गुरु अपनाए। कोई कहता है गुरु बनाने की आवश्यकता क्या है । ऐसा है स्वयं श्री राम विश्वामित्र के शिष्य थे , कृष्ण संदीपनी के , परशुराम प्रभु ईशान के शिष्य थे । गुरु के बिना जीवन नर्क के समान है । इसीलिए सदैव गुरु बनाए किंतु उचित चुनाव करे की वह उस योग्य है की नही । जिस गुरु में स्वार्थ की भावना लैश मात्र भी न हो ऐसे पुरुष को अपना गुरु बनाए । गुरु से केवल शिक्षा प्राप्त करना यह उचित नहीं माता पिता के समान वह गुरु पूजनीय है उसकी सेवा करो । गुरु के चरणों में जिसकी प्रीति न हो वह निस्संदेह पापी है। उसकी प्रतिष्ठा शून्य हो जाती है।
अंतिम में मैं सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाए देता हूं ।
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