एक व्यंग्य :बुजुर्ग या घर के बड़े (जिन्होंने अपने बाल यूँ ही धूप में नहीं सफेद कियें हैं)
व्यंग्य : बुजुर्ग या घर के बड़े
(जिन्होंने अपने बाल यूहीं धूप में नहीं सफेद कियें हैं)
हमें अगर बेसबब कहा तो अच्छा न होगा, नौजवानों
हम बुजुर्ग हैं,
ये बाल यूँ ही सफेद नहीं किये हैं,
बरसात के पानी सींचा है इनको,
और जितनी उमर है ना! तुम्हारी
ये अठरा उन्नीस साल की,
इनसे ज्यादा तो हम खेतों में काम किये हैं।
हम अपनी संस्कृति और परम्पराओं को तुमसे कहीं अच्छी तरह से जानते हैं,
हम लाखों का दहेज दे देंगे , लड़की की शादी में,
और अगर हमारी हैसियत न हुई तो , कर्जा ले लेंगे, या फिर अपनी दो...