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एक व्यंग्य :बुजुर्ग या घर के बड़े (जिन्होंने अपने बाल यूँ ही धूप में नहीं सफेद कियें हैं)

व्यंग्य : बुजुर्ग या घर के बड़े
(जिन्होंने अपने बाल यूहीं धूप में नहीं सफेद कियें हैं)


हमें अगर बेसबब कहा तो अच्छा न होगा, नौजवानों
हम बुजुर्ग हैं,
ये बाल यूँ ही सफेद नहीं किये हैं,
बरसात के पानी सींचा है इनको,
और जितनी उमर है ना! तुम्हारी
ये अठरा उन्नीस साल की,
इनसे ज्यादा तो हम खेतों में काम किये हैं।
हम अपनी संस्कृति और परम्पराओं को तुमसे कहीं अच्छी तरह से जानते हैं,
हम लाखों का दहेज दे देंगे , लड़की की शादी में,
और अगर हमारी हैसियत न हुई तो , कर्जा ले लेंगे, या फिर अपनी दो बीघे जमीन बेंच देगें,
लेकिन लड़की की शादी हम अपनी मर्ज़ी से ही करेगें,

हम लड़की की शादी करने के लिए सब कुछ करेंगे,
शिवाय उसकी मर्जी से शादी करने के।

तुम क्या जानो, शादी वादी ये सब,
तुम सब आज के नए बच्चे हो, मोबाइल चलाने के अलावा तुमने देखा ही कहाँ कुछ है,

(फिर भले ही दौलत के प्यासे , ससुराल वाले लड़की की इज्ज़त करें या न करें इसे ही अपना भाग्य समझ कर लड़की सारी जिंदगी ख़ुद को मारकर जीती रहती है।
लड़की पूरी तरह से बड़ी भी नहीं होने पाती की उसे उसकी जिम्मेदारियां बताना शुरू कर देते हैं,
ये क्यूँ नहीं समझते हो आप लोग की उनका अपना अस्तित्व है, उनका भी अपना स्वतन्त्र जीवन है,
लेकिन भाई काहे समझो,
तुमने मूंछ धूप में थोड़े ही सफेद की है,
पूरी ज़िंदगी तो इन्हीं को संवारने में लगा दी,

काश ! यही बाल महिलाओं को समझने में पकते,
उनकी समस्याएं क्या हैं,
आखिर उनका अपना मन्तव्य क्या है ये भी कोई समझना चाहता ,
लेकिन नहीं सबको तो free होना होता है अपनी ही बेटियों से,
सोचतें हैं इसकी शादी कर दें हम लोग free।
बहुत सारी लड़कियों का जीवन जो खुशहाल नहीं हो पाता है ,उसका कारण ये कतई नहीं होता है कि लड़की का नसीब अच्छा नहीं होता,
उसने गलत नक्षत्र में जन्म लिया ,
बल्कि बस यही दकियानूसी सोंच के कारण न जाने कितनी निर्दोष लड़कियाँ खुशी खुशी शूली पर चढ़ जाती हैं,
उन्हें समाज, लोक लज्जा, इन सब डर सिखाया जाता है।

खुद सब इतने उच्च कोटि के पवित्र आत्माएं हैं कि क्या कहा जाए !

Ultimately निष्कर्ष रूप में यह कहना चाहता हूँ कि ,
मैं भी मानता हूँ, पैसा रुपया धन दौलत ये सब जरूरी है आज,
लेकिन इनका महत्त्व फिर भी किसी के जीवन, किसी की भावनाओ से कभी ज्यादा नहीं हो सकता है।)
© @मृदुलकुमार