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क्यों नहीं भूल पाते हम?
क्यों उस एक शख्स को कभी छोड़ नहीं पाते हैं? क्यों उसे भूलना इतना मुश्किल हो जाता है?

हमने कोशिश तो की थी, खुद को उससे अलग करने की, लेकिन नाकामियां ही हाथ लगीं। आज भी याद है वो वक्त, जब उसे पाने की चाहत में हमने खुद को कहीं खो दिया था। मगर उस खोने में भी एक अजीब-सी खुशी थी, जैसे खुद को खोकर भी हमने खुद को ही पा लिया हो।

वो इंसान बिल्कुल हमारी तरह था। हमारी तरह सोचता, हमारे दर्द को समझता। कभी-कभी लगता था कि शायद भगवान ने गलती से दो इंसानों को एक जैसा बना दिया। उसके साथ सबकुछ मानो पूरा था। जो कुछ था, वो उसे समर्पित कर दिया। दिन-ब-दिन उसकी मोहब्बत में डूबते गए।

जैसे-जैसे वक्त बीता, हम उसमें और ज्यादा खोते गए। उसके लिए अपने अंदर भरोसे का एक-एक कतरा जमा करते गए। लेकिन जब वो कतरे समंदर बने, हालात बदलने लगे। वो भी दुनिया की तरह बदलने लगा। और फिर, एक दिन ऐसा आया जब लाख...