अरेराज की छठ पूजा और बचपन
छठ महापर्व एक उल्लास उमंग का पर्व है जिसपे सारे घर के सदस्य और मित्रगण का समागम होता है। मैं भी इस वर्ष छठ पर्व के हेतु घर पे ही था। इस बार घर पे कोसी भरा जाना था तो थोड़ी भाग दौड़ अधिक थी। कोसी भरना छठ पर्व के दौरान किया जाने वाला एक विशेष उपासना पद्धति है जिसमे गन्नों के गट्ठर को उसके निचले भाग से फैलाकर खड़ा करके उसके चारो तरफ नाना प्रकार के फलों और मिठाइयों से सजे हुए बड़े मृतिका पात्र में दीप प्रज्वलित कर छठ मईया का आह्वान किया जाता है। साँझ पहर के छठ घाट पे दौरा (बाँस या पीतल का बना हुआ पात्र) ले जाकर घाट पे रखने के बाद कुछ और करने को रहता नहीं है। छठव्रती माताएं और बाकी के परिवारजन सब अस्तगामी सूर्य देव की पूजा करते है और उनके पूर्णतया अस्त हो जाने का इंतज़ार रहता है। इस बार की छठ पूजा में सँझिया घाट के समय दौरा ले जाकर रखने के पश्चात् जो भगवान सूर्य के अस्त होने तक की प्रतीक्षा का समय था बड़ा हीं उबाऊं सा था। एक बड़ी हास्यास्पद सी स्थिति थी मेरे साथ। जिस छठ पर्व का उद्देश्य ही बंधु-बांधवों और परिचितों का समागम होता है, उस पर्व में मैं अकेला पड़ गया था। प्रतीक अपने एक मित्र के साथ कहीं चला गया और पिता जी भी शामिल हो गये अपने मित्र मंडली में। मैं अकेला घाट के पास खड़ा देख रहा था लोगों को सेल्फ़ी लेने में व्यस्त। छोटे छोटे बच्चों की मस्ती देख मुझे मेरा बचपन याद आ रहा था। मेरा पूरा बचपन अरेराज में ही व्यतीत हुआ तो आज भी वहां के शिव मंदिर के प्रांगण में होने वाली छठ पूजा की स्मृतियाँ वर्तमान छठ पूजा की नूतन स्मृतियों को अपने समक्ष टिकने नहीं देतीं। और ऐसा हो भी क्यूँ ना...