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मेरी वेदना
प्रथम साहित्य...मेरी वेदना......




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मुझे नहीं पता आपने मेरे बारे में अब तक क्या सोचा है, मग़र आपकी उतनी ही इज्जत है मेरे दिल में जो पहली मुलाकात में थी और हमेशा रहेगी मसले, गलतफहमियां, होना अलग बात है, और ये भी उतना ही सच है जितना आपका आपके माँ पापा के लिए प्रेम और विश्वास, उम्मीद है
आप समझेंगे मेरी वेदना,आपका किये हुए बदलाव की एक छोटी सी झलक hope you will like .....
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ये एहसास आज की दुनिया और समाज के हिसाब से काल्पनिक और व्यर्थ लगते है ,क्योंकि माता पिता सिर्फ लड़के की कमाई और परिवार कितना सम्रद्ध है ये चुनते है ताकि उनकी बेटी अच्छा जीवन जी सके ,पर वो तो अपने साथी से साथ उड़ने ,उसे समझने और हर बात में साथ देने की उमीद रखती है ऐसा साथी चाहती है जो उस से गलती भी हो तो उसे समझे की क्यों हुई नकि उसपर ऊँगली उठा दे सबकी तरह,उसकी आँखों से पढ़ सके जो वो बोलना न चाहती हो उसके चेहरे से समझे तकलीफ क्याउर उसके साथ में अपनी दुनिया देखता हो, मग़र माँ बाप की ख़ुशी के लिए चुप चाप उनका कहा मान लेती है और जब भी मिलती है तो आंसू छुपा कर चाहे जो भी तकलीफ हो हँसी के साथ है ताकि माँ बाप को उनका फैसला गलत न लगे और ससुराल वाले उसके पर जो की अभी उगे भी नहीं लगाम कस देते है
उसके सारे अरमां वही दफन हो जाते है
फिर आता है हमसफ़र जो उसे महज भोग की वस्तु और एक नौकर से ज़्यादा कुछ नहीं समझता मैं मानता हूँ सब ऐसे नहीं होते मग़र ज़्यादातर यही सच है
आखिर कब हर प्रेमी को हक़ होगा उसकी खुशियों में साथ देने का ,उसके सपनो को अपना समझ कर पूरा करने का , वो तो सिर्फ उसे चाहता है उसे कोई दहेज या कुछ और नहीं चाहिए तो फिर भी माँ बाप समाज के दवाब में दोनों के अरमानो का गला कब तक घोटेंगे,कब तक उनको समाज स्वीकार नहीं करेगा सम्मान के साथ अगर बेटी को पढ़ा सकते हो
कुछ बना सकते हो तो उसके इस फैसले पर ऐतराज क्यों
कब तक उसको हक़ नहीं अपना साथी चुन ने का कब तक वो युही अपने सम्मान , अपनी उड़ान, अपने जीवन को अपने हिसाब से जीने के लिए के लिए लड़ती रहेगी इस समाज से ,अपने ही परिवार से अकेले ही ,और कोई उसका साथ भी दे ,तो यही समाज उसे चरित्रहीन कहने में नहीं कतारायेगा कब तक,वो अपने चरित्र को बचाने के लिए अपने सपनो अपने जीवन की बलि देती रहेगी ,अगर इसे ही समाज कहते है जो लड़की है तो कोख में मार देते है नहीं तो ये भी वही चीज है बस तरीका अलग है जिसके सपने मर जाये वो ज़िंदा लाश ही है अगर यही समाज है तो मैं बिलकुल सामाजिक नहीं होना चाहूंगा,इसे ही धर्म मानते लोग तो मई धार्मिक भी नहीं ,क्योंकि मैं हर हाल में उसका साथ दूंगा ,अंजाम चाहे जो भी हो
बिना समाज के उसमे अपनी दुनिया ढूंढ लूंगा ,बिना परिवार के उसमे अपनी खुशिया ढूंढ लूंगा, उसकी एक हँसी के सामने दुनिया की हर ख़ुशी
बेकार है ,मेरे हमसफ़र मुझे बस तेरी हां इंतज़ार है,,,तेरी हां,का इंतज़ार🌹
उपरोक्त विचार अब भी अधूरे है क्योंकि ये शब्दो में बंधने वाला मुद्दा नहीं है 👉विचार व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है उम्मीद है पढ़ने वाले शब्दो के सही अर्थ समझेंगेतभी भाव स्प्ष्ट होगा ............
पहली बार आज इतना लिखा है और इसका सारा श्रेय मेरी दोस्त मेरी सब कुछ unka का है ,क्योंकि उस से पहले इतनी हिम्मत नहीं हुई मेरी
बस वही परिवार ,समाज ,रुढ़िया इनमें उलझी है, माँ बाप खुशिया हर बेटी
की तरह उसे भी उतनी ही प्यारी है, thanks for making me ABLE
.❤️Honey🌹