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पिता
शाम होते ही सब कितना शांत हो जाता है। पार्क में खेलते हुए बच्चे । काम धंधे से लौटते हुए लोग।


घरों के किनारे दीवारो की आड़ लेकर, धीरे-धीरे रहस्यमय तरीके से कुछ-कुछ बतलाते हुए लड़के। बरामदे में खड़ी होकर कुछ सोचती सी लड़कियां । आसमान में बसेरे की ।ओर लौटते हुए पक्षी।


सब कितने शांत और सहज से हो जाते हैं ।


लेकिन दुखी मन के लिए दिन भर के दुखों को समेटने जैसा वक्त तो भाग्यशालियों के लिए,जो कुछ रह गया उसे पूरी शिद्दत से जी लेने की उत्कंठा । कल हो ना हो ।

लेकिन उदास के लिए यही शाम उदासी लाती
है । संताप , बेचैनी, किसी छूटे हुए की यादें, सब कितना सजीव से हो जाते हैं।

वह जो इस दुनिया से चले गए। कितने पास होते हैं। कितनी स्मृतियां कितनी - कितनी बातें कितना - कितना दुख।

अतीत में जाना संभव हो तो आदमी सब कुछ दांव पर लगा कर चला जाए । बस पल दो पल के लिए ही सही।

आदमी के जाते ही वो कितना महत्वपूर्ण हो जाता है , उन अपनों के लिए जो जीवित हैं ।


आज भी रोज की तरह पिता उन्हें शिद्दत से याद आ रहे थे। वो पिता, जिनकी एक एक स्मृतियां उनमें रची बसी हैं। जिनकी एक-एक आदतें एक-एक तरीका सबक वे उत्तराधिकारी से हैं।

जिनके अतीत को वे अपने वर्तमान में जी रहे हैं। बिल्कुल उन्हीं की तरह जैसे पिता , अपने पिता की मृत्यु के बाद महसूस करते थे।

एकदम गुमसुम, एकांत में कुछ सोचते, पछताते और उस समय , जब वे छोटे थे ,इन सबसे बेखबर पार्क में उछल कूद करते रहते।

तब पिता उन्हें निहारते , बिल्कुल उसी तरह , जैसे आज वे अपने खेलते हुए पुत्रों को निहारते हैं ।

पिता जिंदगी में कभी चैन नहीं पाए।


हमेशा कर्जे की तलाश में रहते । छोटी-छोटी जरूरतों का गला घोंटते और उन सब की फिजूलखर्ची पर चिल्लाते रहते।साबुन के बचे अंतिम टुकड़े से स्नान कर संतुष्ट होते पिता। पैदल चलकर रिक्शे...