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शर्त

चंदन को शर्त लगाना और फिर उसे जीतना बहुत पसंद था। हर बात पर शर्त लगाना उसकी आदत में शुमार हो गया था। इसलिए चंदन को लोग शर्तिया चंदन कह कर बुलाते थे। आज फिर उस ने शर्त लगाई थी आनंद से कि वह बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़ के लायेगा। उस बगीचे में आदमी तो क्या चिड़िया भी पर नहीं मार सकती थी ।बगीचे के पहरेदार ने चारो तरफ से बगीचे पर नजर गाड़ी थी। उसके लिए ये बगीचा और उसके फल किसी बच्चे से कम नही थे |पूरे जी जान से वो बगीचे की देखभाल करते थे।
चंदन दबे पांव से बगीचे की तरफ बड़ा इतना डर तो उसे तब नहीं लगा जब वो नौकरी के इंटरव्यू के लिए जा रहा था .वो बगीचे में जाकर जैसे ही आम उतारने लगा उसे अपना बचपन स्मरण हो आया वो ही पेड़ो पे उछलकूद मचाना कच्ची कैरी को नमक मिर्ची के साथ चटकारे लगा के खाना और फिर अपनी चौकीदार कि डांट खाने के बादमां के आंचल के नीचे छुप जाना आज फिर से उसका बचपन सामने आ गया सिवाय उसकी मां के ।आज उसकी मां का पल्लू नहीं था ,चौकीदार से उसे बचाने के लिए
वो एका एक नम आंखों ले साथ
पेड़ से नीचे उतर आया
आज शर्तिया चंदन अपनी शर्त हार गया था पर उसकी मां की यादों ने उसे सिकंदर बना दिया....
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