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बिल्कुल स्कूटी जैसी हो तुम
ज्यादा पुरानी बात नहीं है, सड़कों पर मर्दाना शरीर और बेमिसाल रुतबे का मालिक हुआ करता था - - - स्कूटर ।
स्कूटर चलाना, लड़कों का सिर्फ एक शौक नहीं बल्कि स्कूटर चलाने में महारत हासिल करना, एक लड़के को उन तमाम नवयुवकों की लंबी कतार से अलग खड़ा करके उन्हें वयस्क पुरुष का दर्जा दिलाया करता था ।

स्कूटर पुरुष प्रधान समाज का चेहरा हुआ करता था । स्कूटर पुरुषों में मेहनती और सुडौल शरीर का प्रतीक था । इस वक्त लड़कियां सिर्फ साइकिल तक ही सीमित रहा करती थी । किसी मोटर साइकिल या स्कूटर का उनसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं था।

फिर इस पुरुष प्रधान के प्रतीक को चुनौती देने आई --- स्कूटी।
शुरू शुरू में स्कूटी को सिर्फ एक लड़की अथवा स्त्रीलिंग सूचक समझा गया और लड़कों का स्कूटी चलाना उन्हें आर्थिक रूप से गरीब अथवा कमजोर शरीर को दर्शाता था ।

वक्त गुजरा तो स्कूटर का स्थान नए नए फैशन से लबरेज़ मोटर साइकिल ने लेना शुरू कर दिया । मगर स्कूटी डटी रही, डरी नहीं, वो किसी और ही मिट्टी की बनी हुई थी । वक्त बीता तो स्कूटी ने अपने आप को वक्त की जरूरत के हिसाब से ढालना शुरू किया । घर के कई जरूरी सामान लाने ले जाने में उसने योगदान देना शुरू किया तो घर में खड़ा स्कूटर और मोटर साइकिल बगले झांकने लगे ।
कुछ ही वक्त के बाद स्कूटी ने अपने व्यवहार और सादगी से परिवार के सभी सदस्यों का दिल जीत लिया है । घर में सबसे छोटे सदस्य को ट्यूशन जाना हो, मम्मी को साड़ी पहनकर किसी कीर्तन में जाना हो, पापा को अपना टिफिन और कागजों का बड़ा बैग लेकर ऑफिस जाना हो या घर में दादा जी को डॉक्टर की रिपोर्टों से भरा अपना झोला लेकर दवाई लेने जाना हो, स्कूटी सभी को मदद करती हुई नजर आती है । आजकल हर घर में एक स्कूटी होना उतना ही जरूरी है जितना घर के आंगन में तुलसी को एक पौधा होना ।

मैं स्कूटी को जब भी देखता हूं तो मुझे हमेशा तुम याद आ जाती हो । बिल्कुल स्कूटी जैसी ही तो हो तुम । कैसे तुमने बड़ी सादगी से परिवार के सभी सदस्यों के हिसाब से खुद को ढालकर सबका दिल जीत लिया है । यही नहीं समाज में तुमने अपने पैरों पर खड़े होकर यह भी दिखा दिया कि पुरुष प्रधान समाज, सिर्फ गुजरे हुए जमाने की बात रह गई है । आज हर तरफ नारी अपने पारिवारिक मूल्यों को साथ लेकर दिनों दिन आसमान छूने को तैयार है ।

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© Dr. Joker