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दादी माँ का गांव
एक छोटा सा गांव था बहुत सुन्दर और साधारण सा छोटी छोटी दुकाने थी कच्चे से मकान थे इंसान बहुत भोले और सीधे थे कोई 100 में से 10 पढ़ें लिखे होते थे बाकी सारे अनपढ उसी एक पर निर्भर रहते थे चिट्ठी आती थी तो सारे आँगन में बैठ जाते और एक उसको पढ़ता मानो वो जिसने चिट्ठी भेजी खुद सामने आ गया हो बहुत प्यारा एहसास होता था सुबह जल्दी उठकर खेतों में जाना जल्दी से सबके उठने से पहले सोच कर के आते थे फिर घर पर आकर लीपा चौकी होती थी वो भी गोबर से
सबके लिए चाय चूल्हे पर बनती थी एक साथ बैठ कर पीते थे !फिर कलेवा होता था रात की बच गयी जो रोटी...