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स्त्री और दिवारें
वो एक औरत है जिसके जाने पर घर की दरे दिवारें भी आँसू बहाती हैं, वो दिवारें ही है जो
खड़े खड़े देखी सुनी होती है अपनी गृहस्वामीनी की प्रथम पद चापों को, नववधू
की पैरों के पाजेब की मधुर छम छम को, उसकी हँसी से ही गूँजती थी जीस घर की दिवारें, खिल उठता है जिसके आगमन से घर का कोना कोना, हा उसे भला कैसे भूल सकती है दिवारें, उसकी चुडियों की खन खन को, उसकी सांसों के सरगम को भी पहचानती थी
जो दिवारें, घर में करीने से सजायी हुयी एक एक उस निशानियों को देख कराहती है दरे दिवारें, जीसमे दफ्न रह जाती है उसकी हँसी खुशी, आँसू ,दर्द, उसकी कराहें उसकी चितकारें,,,, हाँ उसे भला कैसे भूल सकती है
वो दिवारें,,, जो साक्षी होती अपनी गृहस्वामीनी
की हर एक पहलू से,, हाँ वो दिवारें सदियों तक
शिशकती रहती है,,,,,,, शिशकती रहती है,,,,,!!

© S. K. poetry ✍️❤jajbate❤