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"मिठाई वाला"
नन्ही मुमताज़ को मिठाइयां बहुत पसन्द थी।वो अक्सर अपने अब्बू के साथ घर के करीब ही मिठाई की दुकान पर पहुंच जातीं और अपनी मनपसंद गुलाब जामुन और दही जलेबियां ले आतीं।घर में अम्मी अब्बू की भी वो बहुत लाडली थी क्योंकि शौकत और सरफराज के बाद उन्हें ख़ुदा की नेमत से बेटी नसीब हुई थी।
उसकी अम्मी अक्सर अपनी बेटी से कहती यहां जितनी मिठाइयां खाना है खा ले ससुराल में तो दूसरों को ही खिलाती रहेंगी कभी अपने मियां को तो कभी अपने बच्चों को तब औरत को खुद की कहां फ़िक्र होती है?
अब्बू हंसकर कहते अरे तुम भी क्या लेकर बैठ गई अभी मेरी बेटी के खेलने खानें के दिन है अभी तो उसे ये सब न कहों,और नन्ही मुमताज़ अपने अम्मी अब्बू का मुंह ताकती रह जाती।
समय अपनी गति से चलता रहा और नन्ही मुमताज़ अब जवान और खूबसूरत हो गई थी।अब वो मिठाई लाने खुद नहीं जाती थी कभी अब्बू ले आते तो कभी उसके बड़े भाई शौकत उसके लिए मिठाई ला देते।
खाना खाने के बाद मुमताज़ को मिठाई खाने की आदत थी।एक दिन उसके दोनों भाई बाहर किसी काम में व्यस्त थे तो घर आते समय मिठाई लाना भूल गए। मुमताज़ ने देखा दोनों थक कर आए हैं तो वह खुद ही मिठाई लेने निकल पड़ी। उसने सर पर हिजाब पहना और फिर निकलीं घर से। कुछ ही देर में वह मिठाई की दुकान पर थी। उसने सौ ग्राम दही और ६ गुलाब जामुन मांगे,इधर मिठाई वाला बस एक टक मुमताज़ को ही देखता रह गया दरअसल बड़ी होने के बाद कभी मुमताज़ का उधर जाना ही नहीं हुआ था, कभी जरूरत ही नहीं पड़ीं मगर आज उसे खुद आना पड़ा। मिठाई वालें की नज़र ही नहीं हट रही थी मुमताज़ से क्योंकि वो बेहद हसीन थी। अचानक वो बोल उठा आपके लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है,आप मिठाई मुफ्त ले जाएं........ सुनकर मुमताज़ को बेहद धक्का लगा जिस मिठाई वालें को बचपन से वो मोहब्बत से फिरोज चाचा फिरोज चाचा कहती आ रही थी आज कैसे उसके जवान हो जाने पर फिरोज चाचा की नज़र बदल गई है। आखिर क्यों होता है ऐसा क्यों एक स्त्री को लोग अपनी बेटी और बहन की नज़र से देख नहीं पाते? क्यो एक खातुन में उनको एक औरत ही दिखती है बेटी और बहन नहीं?
ऐसे ढेरों सवाल मन में लिए मुमताज़ बग़ैर मिठाई लिए ही घर चली आई। (समाप्त)
लेखन समय-3:00 बजे मंगलवार
दिनांक - 30.4.24


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