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सुभाष चंद्र बोस और ऐमिलीशेंकल
स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक बोस के बिना भारत की आजादी का सपना न जाने कब पूरा
होता। सुभाष चन्द्र बोस का जीवन एक आध्यात्मिक क्रान्तिकारी का जीवन था उनका
तन, मन, धन प्राण सभी कुछ मां भारती को समर्पित था। उन्होंने जीवन भर एक सुखी समृद्ध और स्वतन्त्र भारत का सपना देखा
भारतीय स्वतंत्रता के लिए उन्होंने कलकत्ता में अंग्रेजों की नजरबंदी से लेकर योरप तक की वेष बदलकर यात्रा की। तमाम सुख सुविधा संपन्नता को छोड़कर दारुण कष्ट
उठाए
स्वतन्त्रता के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले इस महानायक के जीवन का एक कोमल
पक्ष भी है। एमिली। एमिली एक महान् आस्ट्रियायीे महिला थी जिन्हें सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी जीवन संगिनी बनाया श्रीमती एमिली बोस ने भी पूर्णतः निस्वार्थ एवं समर्पित भाव से नेता जी के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
एमिली से नेता जी की प्रथम मुलाकात आस्ट्रेलिया में हुई,जब वह अपना इलाज कराने के लिए वहां ठहरे हुए थे। उन्हें अपनी पुस्तक लिखने के लिए एक अंग्रेजी जानने वाली टाइपिस्ट की जरूरत थी उनके मित्र ने एमिली शेकल से उनकी मुलाकात करा दी।यहीं पर सुभाष चन्द्र बोस को एमिली से
स्वाभाविक प्रेम हो गया
लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का कार्य तो अधूरा पड़ा था।देश को अभी स्वतन्त्रता कहां मिली थी इसी अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए वो किसी तरह आस्ट्रेलिया से जर्मन पहुंचे।तयं हुआ था कि जर्मन जापन और इटली साथ मिलकर ब्रिटेन के विरुद्ध मोर्चा खोलने में मदद करेंगे
सन् १९४१मे जर्मन की
राजधानी बर्लिन में होटल एकसेलिसियर के कमरे में सुभाष चन्द्र बोस और ऐमिलीशेंकल की पुनः मुलाकात होती है ।यहां सुभाष चन्द्र बोस ओलेंनदो मेजोसटा और एमिली शेकल एक नर्स के रूप में मिलते हे
दोनों के चेहरों पर आश्चर्य प्रसन्नता और उत्सुकता के भाव उमड़ते हैं। सुभाष बाबू को आश्चर्य हुआ कि एमिली ने उन्हें पहचान कैसे लिया। किन्तु तन का बनाव श्रृंगार मन के भावो को नहीं बदल सकता। एमिली ने कहा कल रात तुम राह में मुझे देख कर मौन से आगे बढ़ गये।
मैं जानती थी कि किसी मजबूरी के कारण तुम मौन थे। किन्तु तुम्हारे दिल की धड़कन को बहुत निकट से महसूस किया। मेरी आंखों और हृदय में तुम्हारी छवि गहरी स्याही से अंकित है।वह सहसा चमक उठी।
दोनो के बीच बहुत देर तक अनेक विषयों पर वार्तालाप चला। देर तक वह ठहरना उचित ना समझ एमिली वहां से चलीं गईं। चलते -चलते सुभाष चन्द्र बोस ने कहा स्वास्थ्य की जांच का सिलसिला जारी रखना
एमिली के जाने के बाद सुभाष बाबू का
हृदय भावनाओं से भर जाता है ।उनका हृदय सोचता है वर्षों पहले यह संकल्प किया था कि किसी के प्रेम में नहीं पडूंगा। कलकत्ता में जाने कितने ही विवाह प्रस्ताव ठुकरायें होंगे। प्रणय निवेदन और सर्वस्व समर्पण की पवित्र भावना भी मन को नहीं पिघला पाईं थीं, किन्तु एमी! तुमने मेरे मन पर क्या जादू कर दिया है। मैंने तुम्हारे हृदय में प्रेम का सागर लहराता हुआ देखा है और देखा है तुम्हारी आंखों में कर्तव्यनिष्ठा का झांकता हुआ नीला आकाश। तुम्हारे मन में कोई बनावट या बुनावट नहीं सब कुछ निश्छल, पवित्र, तटस्थ!
एमी मैं भूला नहीं हूं, पिछली यूरोप यात्रा में तुमने रात-रात भर जाग कर
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दि इणिडयन स्ट्रगल"को अपनी कोमल उंगलियों और राष्ट्र प्रेम की भावना से यूं संवारा था मानो वह तुम्हारे आराध्य की आर्ष वाणी का पवित्र ग्रंथ हो। मैं तुम्हारी साधना देखकर अभिभूत था
उस प्रवास में तुमने मेरे रुग्ण शरीर को ही स्वस्थ नहीं बनाया था, मेरे मन को भी कर्म योग का सच्चा पथिक बना दिया था। और तुम बन गई थीं एक सच्ची और आदर्श भारतीय नारी, एक सम्पूर्ण भारतीय आत्मा।
एमी! मेरी प्रार्थना है, जीवन के शेष संग्राम में अब तुम सदा मेरे साथ ही रहना।मेरा साथ मत छोड़ना।तुम मेरी शक्ति हो, तुम्हारा संबल ही मेरी सफलता है
मां काली ने अपने सुपुत्र की यह प्रार्थना सुनी और १९४१मे ही उन्होंने एमिली
शेखर को श्रीमती एमिली बोस बना लिया


© सरिता अग्रवाल


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