...

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हुआ बुरा हाल

एक दिवस जीभ को मेरी, बैठे बिठाये जाने क्या सूझी
लपक उठी नामुराद, गोलगप्पों के चटखारों के लिए

जीभ जो ठहरी, भला कब चुप बैठ मानने वाली थी
निकलवा ही दिया, भरी दोपहरी गोलगप्पों के लिए

पूरी दुपहरी सर पे निकली, मिला न गोलगप्पे का ठेला
नहीं मानी विरोधी हुई, मेरी जीभ गोलगप्पों के लिए

खूब जुगत लगाई, बेचारे पेट को भी शामिल इसमें किया
चालाक...