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सुकरात
बालक सुकरात का जन्म 469 ईसा साल पूर्व यूनान के एक नगर एथेंस में हुआ था। उनकी माता का नाम फिनेरिट था उनके पिता एफ्रोनिस्कस थे जो एक साधारण संगतराश थे।
पत्थर तरस कर उसके माता-पिता उनका भरण पोषण किया करते थे उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। बालक सुकरात ने कुछ दिनों तक विद्यालय और व्यायाम शाला में निशुल्क शिक्षा प्राप्त किया था।
जब सुकरात बड़े हुए तो उनकी रुचि संगीत और विज्ञान में बड़ी जिसके कारण वह एथेंस के बड़े-बड़े विद्वानों कलाकारों दार्शनिकों और कवियों के साथ विभिन्न स्थानों की यात्राएं करना आरंभ कर दी।
अपनी रुचि और आदत के कारण सुकरात विद्वानों और संगीतज्ञओं के घरों पर जाकर उनके द्वार का चक्कर लगाया करते थे। अपने ज्ञान के विकास में वह लगातार लगे रहते थे।
सुकरात वास्तव में एक कुरूप व्यक्ति थे जिनका किसी के ऊपर प्रभाव नहीं पड़ता था और उस पर उनकी गरीबी और चिथड़े पहने हुए नंगे बदन नगर नगर में घूमते रहना। जिसे देखकर लोग अक्सर पागल कहां करते थे?
धीरे-धीरे जब उनमें ज्ञान और प्रतिभा का विकास हुआ कि लोग उनकी ओर आकृष्ट होने लगे बालक सुकरात बड़े सरल और प्रेमी स्वभाव के थे गरीबी के कारण भूखे रहने पर मित्रों के निवास स्थान पर भोजन करने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे।
बालक सुकरात जहां भी लोगों का जमघट देखते चाहे वह चौराहा हो या हाट बाजार हो वहीं पर उनसे ज्ञान की चर्चा करने लगते थे। ज्ञान की चर्चा देखकर के लोगों का जमघट उनके आसपास लग जाया करता था इस प्रकार बक्सर करके अपने ज्ञान की प्रतिभा का अवलोकन किया करते थे।
इनकी गुरु जिन्होंने इन को शिक्षा दीक्षा दी उनका नाम प्राड्रिक्स था वह सुकरात को बड़े स्नेह और प्रेम से देखते थे एथेंस के बड़े बूढ़े बालक सुकरात को अपने बच्चों की तरह प्यार करते थे। बालक सुकरात को धन और खुशियों से बड़ी चिड़ हुआ करती थी जिसके कारण वह सादा दूर भागा करते थे वह असत्य को महापाप मानते थे दूसरे का अहित चिंतन सुकरात की दृष्टि में सबसे बड़ा अपराध था।
बड़े होकर सुकरात ने एथेंस नगर में पहली बार एक विद्यालय की स्थापना की और उसके शिक्षक के रूप में अपना आजीवन कार्य करते रहे उन्होंने यह कहा अपने आप को जानो यही उनके जीवन का लक्ष्य था।
© abdul qadir