...

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मर्द का मन ....
जब मैनें शांति से खँगाला एक मर्द के मन को ..
तो मुझे मिला एक बचपना , जिसे वो समय से पहले ही पीछे छोड़ आया ..
एक मजबूत कंधा जो देता है सबको साहारा ,पर आपनी बारी के वक्त वही उसके आंसू पोछने के काम आता है..
एक हाथ जो चाहता है किसी का हाथ थाम कर दूर तक का सफर तय करना ,मगर पहल करने से भी डरता है ..
कुछ अधूरी ख्वाहिशें जिन्हे पूरा करूगा एक दिन , अभी घर की जिम्मेदारियाँ पूरी करनी जरूंरी है,सोच कर कंही दफन कर जाता है..
एक नाजुक मन , जो सख्त बनने का दिखावा करता है , मगर किसी की हल्की सी मुस्कान से ही पिघल जाता है ..
जब मैनें खगाँला एक मर्द के मन को तो पाया स्त्री की ही भाँति एक कोमल हृदय ,जिसमें बसी होती है कुछ अपेझायें जिन्हें वो किसी से कह नही पाता ..
मगर चाहता है के कोई उन्हें बिना बोले समझें...!!
© pagloti ✍