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इतिहास के पन्नों से,
वीर कुंवर,

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनगिनत किस्से हैं और हर किस्से को सुनकर दिल जोश से भर जाता है और आंखें नम होने लगती हैं। मन में बस यही ख्याल आता है कि जाने कैसे लोग थे, जिन्होंने न जान की परवाह की, न एशो-आराम की। बस निकल पड़े देश को आज़ाद कराने के संकल्प के साथ। इन आज़ादी के परवानों को न तो उनकी उम्र रोक पाई न ही कोई और मोह।

ओडिशा के बाजी राउत ने मात्र 12 साल की उम्र में भारत माँ के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। तो वहीं एक ऐसा सेनानी भी है जिसे 80 वर्ष की अवस्था में अपनी जान की बाजी लगा दी। आज की हमारी कहानी है बिहार के सुरमा, बाबु वीर कुंवर सिंह की, जिन्होंने 80 वर्ष की आयु में ना केवल अंग्रेजों के खिलाफ़ युद्ध का बिगुल बजाया, बल्कि कई युद्धों में अंग्रेजों को परास्त भी किया।

साल 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में वीर कुंवर का जन्म हुआ। बचपन खेल खेलने की बजाय घुड़सवारी, निशानेबाज़ी, तलवारबाज़ी सीखने में बीता। उन्होंने मार्शल आर्ट की भी ट्रेनिंग ली थी। माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद भारत में वह दूसरे योद्धा थे, जिन्हें गोरिल्ला युद्ध नीति की जानकारी थी। अपनी इस नीति का उपयोग उन्होंने बार-बार अंग्रेजों को हराने के लिए किया।

साल 1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब वीर कुंवर की आयु 80 बरस की थी। इस उम्र में अक्सर लोग आरामदेह जीवन व्यतीत करना चाहते हैं और अगर वीर कुंवर भी चाहते तो कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने संग्राम में अपने सेनानी भाइयों का साथ देते हुए अंग्रेजों का डटकर मुकाबला करने की ठानी। उनके दिल में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने तुरंत...