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जंगल की एक घटना
#जंगल
मैंने कहा था स्पेयर टायर चेक करवा लेना निकलने से पहले, लेकिन तुम को तो बस हर बात मज़ाक लगती है। सुदीप ने गुस्से में झुंझलाते हुए रवि से कहा। उफ्फ नेटवर्क भी नहीं है मोबाइल में और इस घने जंगल में कोई दिख भी नहीं रहा।
सुदीप था तो लंबे ऊँचे कद का हट्ठा-कट्ठा नौजवान,पर शरीर से जितना मजबूत,दिल से उतना ही कमजोर। शहर से 85 कीलो मीटर दूर इस सुनसान बियाबान जंगल में तो अच्छे अचछों के पसीने छूट जाएं। फिर सुदीप जैसे डरपोक की तो क्या बिसात।
रवि ने सुदीप के डर से उपजे गुस्से को शांत कराने का भरसक प्रयास किया। पर सुदीप का गुस्सा तो शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
लेकिन कहते हैं न,जहाँ सारेरास्ते बंद हो जाते हैं,तो भगवान एक सहारा जरुर भेजता है। पीछे से टन्न टन्न की मधुर आवाज सुनी रवि ने। रवि ने पीछे मुड़कर देखा तो दूर एक बैलगाड़ी आती दिखी। कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है,सो बैलगाड़ी देखकर ऐसे खुश हुए दोनों दोस्त जैसे कोई मर्सडीज या जागवार देख लिया हो।
जैसे जैसे बैलगाड़ी समीप आ रही थी। दोनों के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी। अंतत: बैलगारी समीप आई तो एक मधुर गीत की आवाज कानों से टकराई..
रे बन्धू रे॰॰ऽऽहे
अंजान रस्ता अनाड़ी मुसाफिर... होऽऽ
जाना कहांँ है तुमको, बता रे मुसाफिर
आए..हह हुर्र हुर्र...
रवि ने बैलगाड़ी को हाथ दिया, तो गाड़ीवान ने बैलगाड़ी रोक दी.

का बात है बाबूजी, एतना बड़ गाड़ी लैके खड़े हो तबहुं बैलवान कै आवाज दैत हौ। का बात है। कौनो मदत उदत चाहिए तो बेझिझक बोलो बाबूजी। अजी मंगलू है हमरा नाम बहुतौं का मदत किया हूंँ ! हल्कै में न आंकिऔ हांंऽ
अ-अरे भैया मंगलू। हम तुम्हें हल्के में आंकने की गलती कैसे कर सकते हैं भला। अब ये बताओ यहांँ कोई मैकेनिक मिलेगा, मेरी गाड़ी का टायर पंचर हो गया है।

मंगलू- देखो बाबूजी इहां तो दूर तलक कौनों अकैनिक मकैनिक नाहीं है।

रवि- तो एक काम करो, कोई धर्मशाला या सराय हो तो बता दो।

मंगलू- उहो 10 या 12 कीलो मीटर आगे होई बाबूजी।

मंगलू की बातें सुनकर तो सुदीप और रवि के पैरों तले जमीन खिसक गई। सर से पांव तक पसीने में नहा गए दोनों।
घबराओ मत जी। थोड़ी दूरी पर ही हमरी कुटिया है। कांटन से घेरकै रखते हैं हम उनका। उहां कौनो जनावर नाई जाई सकत। आप लोगन को ठीक लगे तो चलो वहीं। हम आदिवासी हैं।जे भी कछु बनाएंगे हम तोहका खिलाएंगे। और हां बाबूजी ललुआ के भेजके हम तोहार पंचर बनवाय देत है। बस आप 200 रूपैया आ अपनी गाड़ी का चक्का दै दो इका। उऽ का है न, इहां 200 से कम में पंचर नहीं बनावत है।

रवि और सुदीप की आंखों में चमक आ गई। रवि दौड़कर स्टैपनी ले आया और मंगलू को दे दिया और 500 रुपये भी दिए और बोला, जो बचेंगे रख लेना।

मंगलू-बहुत अच्छे हो बाबूजी आपलोग। चलो बैलगाड़ी मां बैठो।

मुख्य सड़क से थोड़ी दूरी पर ही थी उसकी झोपड़ी। वहां पहुंचकर मंगलू ने रवि ओर सुदीप को उतरने का ईशारा किया तो दोनों बैलगाड़ी से जैसे तैसे कूदे। मंगलू भी उतर गया। ललुआ बैलगाड़ी से ही पंचर बनवाने निकल पड़ा।
झोपड़ी ,सचमुच सुरक्षित थी।
क्रमश:


© Kaushal