ये कैसी आझादी
मैं हु मंगल जी नहीं पांडेय नहीं शर्मा मेरा जन्म 1929 मैं लाहौर मैं हुआ मेरे बापू को लगा होगा ये आगे जाके देश की आज़ादी मैं अपना बलिदान देगा शायद इसलिए मेरा नाम मंगल रखा हो , मैं उतना बड़ा तो नहीं हो पाया लेकिन हर लड़ाई मैं अपना योगदान देता आ रहा था । लाहौर की गलियों मैं आंदोलन की बात हो और उसमे मंगल और सय्यद के चर्चे ना हो ऐसा कैसे होता । सय्यद मेरे तरह ही देशप्रेमी था सभी आंदोलनों मैं बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता था । ये बात है 1945 कि जब अंग्रेजो चले जाओ आंदोलन अपने चरम सीमा पै था । देश को जैसे आझादी मिलने ही वाली हो कई सालों का सपना जैसे पूरा होने को था जिन जिन लोगो ने अपनी जान देश को देदी उनका स्वप्न पूरा होने को था लेकनि इतने सरल आझादी अंग्रेज़ देदे तो कब की देदी होती ! उसी समय जिन्हा ने मुस्लिमो के लिए अलग देश की मांग की यकायक भारत की एकता मानो टूट गयी अभी भी एक मुस्लिम गट partion...