आते जाते
ज़िंदगी की राहों पर लोग आये, दिल के ज़ज़्बातों का मज़ाक उड़ाया
मग़र ऐसा कोई ना आया, जिसने दिल के ज़ख्मों पर मरहम लगाया
यूँ तो ना ज़ख़्म ठीक हुए, ना कभी भरे, बस नासूर बन रिसते रहे
लोग आते रहे, लोग जाते रहे, आते जाते ज़ख़्मों को कुरेदते रहे
क्या मिल गया, दिल का खेल खेल कर, मेरे दिल से भी उतर गए
गए सो...
मग़र ऐसा कोई ना आया, जिसने दिल के ज़ख्मों पर मरहम लगाया
यूँ तो ना ज़ख़्म ठीक हुए, ना कभी भरे, बस नासूर बन रिसते रहे
लोग आते रहे, लोग जाते रहे, आते जाते ज़ख़्मों को कुरेदते रहे
क्या मिल गया, दिल का खेल खेल कर, मेरे दिल से भी उतर गए
गए सो...