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स्वाधीनता
एक बार जब आप खुद से मिल लेते हैं , खुद को जान लेते है, परख लेते हैं, पहचान लेते हैं , तब आप खुद में ही साधारण से बहुत असाधारण इंसान हो जाते हैं, तब फिर आपको सिर्फ आप और आपका एकांत अच्छा लगता है, पर ऐसा नहीं है की लोग बुरे लगते हैं, आपको लोगों से फर्क ही नहीं पड़ता, पड़ता भी हैं गर तो आपकी अच्छाइयों से, बुरी बातों या बुराइयों पर अपनी आपको महज हंसी आती है

आप खुद को जीते हैं खुद से ऊबे बगैर, और आप बहुत उपर उठ चुके होते हैं दुनिया भर के कुछ बेबुनियादी वादों उसूलों और भावनाओं से

तब फिर आपको न दुनिया अच्छी या बुरी नही लगती, तब आप सिर्फ समझते हैं उनको की वे ऐसी हैं तो क्यों है वैसी हैं तो क्यों है और जो भी है उस क्यों से गुजरकर ऐसी है जो स्वाभाविक है

तब आप न किसी से भी कोई उम्मीद, भरोसा नहीं रखते, न आप किसी को बांधना चाहते है इससे आप खुद जंजीरों में जकड़े हुए लगते हैं, ऐसा करके, आप किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते किसी भी चीज के लिए क्योंकि ये आपको ही घुटन महसूस कराता है,

आप खुद को बस वक्त के साथ बांधे खोले रहते है, लोगों से आप परहेज रखना चाहते हैं खासकर उन मुद्दों में जो मुद्दे इंसान को मानसिक रोगी बना देती है,

आप चीजों को पकड़ के नही रखना चाहते फिर, आप खुद को जकड़ा हुआ महसूस करते हैं उन सब में, तब आप समझ जाते हैं जिंदगी जीने का तरीका, खुद में ही नई चीज ढूढने की कोशिश और पाकर खुश होने का जश्न और खुद में ही मगन

तब आप बहुत परिपक्व के साथ साथ समझदार, संवेदनशील और विवेकशील भी हो जाते हैं, जब आप मिलते है खुद से और पाते हैं उमर भर के लिए खुद में ही मौजूद एक नया शख्स जिसे रोज खुद ही किसी परेशानी में डालकर चुनौती देना फिर जीत का जश्न मनाना अच्छा लगता है...



© vibhuti