REINCARNATION
Reincarnation यानि पुनर्जन्म। क्या आप पुनर्जन्म मे मानते है? निसंदेह अगर आप आस्तिक है तो शायद 95 प्रतिशत लोग मानते है। क्या आप्ने कभी आत्म मनन किया है की हम सभी जीते है और मरते है अपनी अपनी सोचे हुवे मकसद को लेकर। लेकिन क्या यही हमारे जीवन का मकसद होता है जिसका हम चुनाव करते है ? अगर नही तो हमारे जीवन मरण के चक्रव्यूह का औचित्य क्या है? क्या आप्ने कभी सोचा है की वर्तमान समय मे इन्सान की उम्र औसतन 60-70 के बीच ही सिमट कर रह गई है? इस समय के दौरान जब हम अपनी समझ पकडते है तब हमे जीने के लिये भागना पड्ता है और अन्त मे मरने का समय आ जाता है। तो क्या यही हमारे जीवन का उद्देश्य है “जीना”? अधिकतर लोगो का मान्ना है की ये भागना ही जीना होता है। परंतु क्या आपको कभी एसा नही लगता की हम कही फस गए है जेसे किसी वीडियो गेम की तरह, गेम ओवर होने पर जेसे हम पहली स्टेज पर आ जाते है वैसे ही हमारे मरने के बाद शुरु से (हिन्दु शास्त्र के अनुसार) हमे जीवन शुरु करना होता है। इस प्रक्रिया का क्या कोई अन्त है? जैसा की हमारा विषय पुनर्जन्म पर है। इस कोरोना महामारी मे हमने अप्ने किसी ने किसी अजीज को खोया है तब हमारे मन मे ईश्वर (कोई भी धर्म के) के प्रति विश्वास खत्म होने लगता है की क्या भगवान का कोई अस्तित्व है? क्या हमने जिनको खोया है क्या हम उनसे उनके किसी और रुप मे मिल सकते है ? तो आखिर कितनी सत्यता है पुनर्जन्म जेसी बातो मे? चलिए कुछ विद्वानो के विचारो से सचाई दूंढ्ने का छोटा सा प्रयत्न करते है –
पुनर्जन्म का रहस्य—
अनिल कुमार मैसूर नागराज, रवीश बेविनाहल्ली नानजेगौड़ा, और एस। एम। पुरुषोत्तम मानव जाति की उत्पत्ति के बाद से मानव मन को गुदगुदाने वाले रहस्यों में से एक “पुनर्जन्म” की अवधारणा है जिसका शाब्दिक अर्थ है “फिर से मांस लेने के लिए।” जैसे-जैसे सभ्यताएँ विकसित हुईं, विश्वासों में विभेद होता गया और विभिन्न धर्मों में प्रसार होता गया। प्रमुख विभाजन “पूर्व” और “पश्चिम” था। पूर्वी धर्मों में अधिक दार्शनिक और कम विश्लेषणात्मक होने के कारण पुनर्जन्म स्वीकार किया है। हालाँकि, विभिन्न पूर्वी धर्म...
पुनर्जन्म का रहस्य—
अनिल कुमार मैसूर नागराज, रवीश बेविनाहल्ली नानजेगौड़ा, और एस। एम। पुरुषोत्तम मानव जाति की उत्पत्ति के बाद से मानव मन को गुदगुदाने वाले रहस्यों में से एक “पुनर्जन्म” की अवधारणा है जिसका शाब्दिक अर्थ है “फिर से मांस लेने के लिए।” जैसे-जैसे सभ्यताएँ विकसित हुईं, विश्वासों में विभेद होता गया और विभिन्न धर्मों में प्रसार होता गया। प्रमुख विभाजन “पूर्व” और “पश्चिम” था। पूर्वी धर्मों में अधिक दार्शनिक और कम विश्लेषणात्मक होने के कारण पुनर्जन्म स्वीकार किया है। हालाँकि, विभिन्न पूर्वी धर्म...