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लेखक का इश्क - तुम आना जरुर
लेखक इश्क में पढ़कर इश्क को पढ़ता है
और आशिक इश्क में पड़कर खुदको खोता हैं

इसलिए जो आनंद एक लेखक ले सकता है इश्क का वो कोई और सरलता से नही ले सकता

बाकि संजीदगी अपनी अपनी है कितनी समझ और परवाह है अपने जज्बात की वो परिभाषित करती है
इश्क को

ज्यादातर इश्क में कौन पड़ता है जिसे या तो इश्क समझना हो या समझाना इसके अलावा इश्क बहुत बारीक चीज है

जल्दी कहां समझ आती है


तुम आना जरुर

तुम आना जरुर हम बैठकर खूब सारी बातें करेंगे
तुम वो सारे पल बताना जरुर जिनमें तुम अकेले खोए थे और ना जानें कितना ही रोए थे
तुम आना जरुर
मैं सुनूंगा तस्सली से , गले लगाऊंगा मैं कसके तुम्हे, तुम बताना जरुर की तुम्हारे साथ क्या क्या हुआ था , मैं लाऊंगा वो हर एक चीज जो तुम्हे प्यारी थी , जिसे तुमने भुला दिया इस दुनियां दारी की लापरवाही में , मैं समेटूंगा तुम्हे हर ज़र्रे ज़र्रे से जहां तुम बिखरे कभी थे , होंगें कई सारे किस्से जिनमें से गुजरे जरुर थे , मैं हर वक्त तो तुम्हारे पास हो नही सकता , पर जितना भी वक्त दूंगा इस बार , होकर तुम्हारा ही ऐतबार मैं तुममें खो जरुर हूं सकता, वो तमाम तकलीफे, वो तमाम आंसू , वो तमाम वो हर कुछ तुम मुझे बता देना , मैं समेट लूंगा और कहीं दूर फेंक आऊंगा या तल्खियां, अब जब हो चुकी होगी सफाई , तुम मुझे भर लेना , इससे ज्यादा और मैं तुम्हारा होने के लिए , फिर कुछ सोचकर आऊंगा , तुम आना जरुर हम बैठकर खूब सारी बातें करेगें....

© मन की राह @ Neeraj singh