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श्राद्ध.....
" पितृ पक्ष या श्राद्ध " .....

कुछ विश्वास, कुछ अंध विश्वास, कुछ भ्रांतियाँ, कुछ विवाद और कुछ दबे से प्रश्नों के बीच, परम्परागत रूप से इसे मानने और मनाने को अक्सर लोग केवल एक भय से बाध्य होते है कि उनके दिवंगत पितृजन उनसे रुष्ट ना हो जाए और उनका या उनके परिवार का अनिष्ट ना कर दे l और अधिकांशतः इस विधि को एक दिखावे का जामा पहनाने का प्रयास करने से भी पीछे नहीं हटते हैं l
एक ब्राह्मण कन्या होने के बावजूद भी यदि हम ये लेख लिख रहे है तो इसका स्पष्ट मंतव्य है कि कुछ भ्रांतियों का विरोध तो नहीं, परंतु उन पर प्रश्न जरूर उठता है l
श्राद्ध यानी श्रद्धा..... अपने माता पिता,दादा दादी, या वह हर व्यक्ति जिसने हमारे उत्थान में अपना सहयोग दिया हो , के प्रति हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम उन्हें हर प्रकार से संतुष्ट कर उनके हमारे जीवन में किये गए सहयोग के ऋण से मुक्त तो नहीं पर उसका कुछ अंश उनके लिए यथसंभव सेवा भाव रख कर पूरा करने का प्रयास करे l ये सेवा भाव उनकी हर प्रकार की जरूरतों को पूरा करने और उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा रख कर पूरा किया जाता है l
प्रश्न ये है कि केवल इन्ही दिनों में क्यों, ये तो वर्ष भर, प्रत्येक दिन होना चाहिए l साल भर अपने जीवन की व्यस्तता और अपनी खुशियों या जद्दो जहद में किसी को भी दिवंगतजन तो छोड़िये, जीवित माता पिता, दादा दादी या अन्य सम्मानितजन को पर्याप्त समय तक देने का ख्याल भी नहीं आता l
किसी भी कार्य को कराने का सबसे उत्तम मार्ग होता है, " भय " l भय की उत्पत्ति होती है, जब हमारे हृदय और मस्तिष्क में हमारी कमियाँ हमें बैचैनी की अवस्था में ले जाती है l तब हम उन्हें शांत करने या कहूँ ऐसे कृत्यों द्वारा बहलाने का यथासंभव प्रयास करते है l
धार्मिक दृष्टिकोण से इसका अपना महत्व है l हम अपनी परम्पराओं को अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए उन्हें अपनी अगली पीढ़ी को सौंपने के दायित्व से मुँह नहीं मोड़ सकते l कुटुंब या परिवार का एकत्रित हो कर अपने पूर्वजों और उनकी दी गई शिक्षा एवम उनके गुणों का अपनी अगली पीढ़ी के साथ मिलकर स्मरण करना, भी एक कारण था l दान पुण्य, श्रद्धा, नियम, परंपरा, इन सभी का पालन अनुशासित रूप में करने के लिए ही ये 16 दिन बाधित किये गए है l शायद हमारे पूर्वजों को ज्ञात था कि आने वाली पीढ़ियों को अनुशासित करने के लिए ये आवश्यक है l
नहीं जानते कि हम कितने सही हैं या गलत,और ना ही इसके विरोधी है, बस प्रश्न उठा मन में कि केवल इन्हीं दिनों में क्यों, वर्ष भर क्यों नही..
त्रुटि के लिए क्षमा 🙏🏻🙏🏻 ...


© * नैna *