...

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ना जाने क्यूं.....
इस दफा मिल कर
बहुत सी बातें करनी थी तुमसे
पर नहीं कर पाई,
इस दफा मिल कर
कुछ अपनी कहनी थी कुछ तुम्हारी सुनानी थी
पर ना जाने क्यूं अपने ही दिल का हाल बता पाई ना तुम्हारे हाल जान पाई,
इस दफा मिल कर
बताना था कैसे गुज़रे ये दिन तुम्हारे बिना
और कैसे कटी ये रातें थी
पर ना जाने क्यूं नहीं कर पाई हाल-ऐ-दिल बया,
इस दफा मिल कर
मुझे लड़ना था तुमसे कि क्यूं इतने दिन दूर रहे मुझसे और ठीक से बात भी नहीं कि रूठना था तुमसे और तुम्हे मानना भी था
पर मैं कहां रुठ पाई और ना ठिक से लड़ ही पाई,
इस दफा मिल कर
करना था मुझे तुमसे और भी ज़्यादा प्यार
पर वो भी कहां कर पाई,
इस दफा मिल कर
सबसे पहले लगना चाहती थी जी भर कर तुम्हें गले और तुम्हारे कंधे पर सर रखकर सोना चाहती थी पहले कि तरह सुकून कि नींद
पर पता नहीं क्यूं नहीं सो पाई,
मन ही मन ढूंढती रही जज़्बातों को बया करने के लिए अल्फाज़
पर नहीं मिला कुछ
इतने सालों कि हमारी मोहब्बत में कभी ऐसी मुलाकात नहीं हुई हमारी
फिर आज ऐसा क्यूं,
आज भी तुमसे बेपनाह मोहब्बत होने पर
ना जाने क्यूं मेरे लब ख़ामोश रहे और मैं बैठी रही बुत (पुतला) बन कर
ना जाने क्यूं.....


Kaise samjh Jaya karte the hum ek dusre ki mn ki bt bina kuch kahe he💑
Wo pahli ki mulakaten or wo bate jo
© काल्पनिक लड़की