#मानवता
आज कल जमाना बड़ा तेज गति से भागा जा रहा है ।लगता है, जो बिछड गया वह पिछड़ गया । ऐसे माहौल में हम थोडा सा अवलोकन करतें हैं , तो पता चल जाता है , कि लोगों में विवेक का स्तर घट रहा है । कदम हर कदम मनुष्यों में उतावलापन और बेसब्री दिखाई पडती है । पल पल का संघर्ष और विफलता शायद उसे आक्रामक बना रही है - धैर्य तो जैसे छूट ही गया हो ।
लोग मुलतः धर्म को लेकर कुछ ज्यादा ही कट्टर होते जा रहे हैं, बल्कि स्वयं के धर्मनुमासंप्रदाय को सर्वश्रेष्ठ ठहराने के लिए ही आक्रामक हो रहे हैं। वस्तुतः यह अनुचित है । हमारे धर्म में ऐसा कभी नहीं हुआ था क्योंकि यहाँ हर एक को अपना पक्ष रखने की छूट दी गई थी और इस जो सही नहीं लगा उसका खण्डन सलीके से करना भी लाजमी माना जाता था । शायद इसलिये ही इतने सारे मतमतांतर ,संप्रदाय, विचारधाराएं और वाद..पंथ,फिरके...आदि चल निकले हैं । लेकिन गौर करने की बात तो यह है , कि वह अत्यधिक आक्रामक नहीं हुई है । कल भी नहीं थी और आज भी नह है । अंततोगत्वा आज भारतभूमि 'बहुरत्ना वसुंधरा' की तरह 'अनेकता में संपूर्णता' की ओर 'शांति' प्रस्थापित करने जा रही है । वाद है जरूर मगर विवाद नहीं ।
तत्कालीन परिवेश की तंग स्थिति के बावजूद वह भोगवादी नहीं बन पाई जबकि भोगवादी संस्कृतियां वास्तव में आक्रामक बनकर अपनी बात ही दूसरों पर थोपने के लिए मान्यताएं , नकली फलसफे और अपनी अंतिमवादी परंपरावादिता की दुहाई दे रहे हैं ।
हमारी प्राचीनतम परंपराओं के बावजूद हम ने सभी को स्विकार किया , सामंजस्यपूर्ण रवैया अख्तियार किया और बडा दिल रखकर भाईचारा चाहा फिर भी वे हमारे पर अपनी खोखली बातेँ थोपने का प्रयास करते हैं । बहुमत लोकतांत्रिक व्यवस्था में अमूल्य हथियार है लेकिन इसे सिर्फ अपने अधिकार के लिए उपयोग करना चाहते हैं तो वह गलत है । वास्तव में देखा जाय तो जहाँ स्वार्थ आता है वहां वे 'लाभ' लेने के लिये उदारता बताते हैं और जहाँ 'कानूनन' नुकसान होनेवाला हो ता है तो चुप्पी' साध लेते हैं । यह सुविधाजनक व्यवहार के उपरांत भी अपनी कुत्सित और घटिया विचार धारा के लिए आक्रामक बनते जा रहे हैं । यह दूनियाभर के लिए खतरनाक स्थिति पैदा कर रहा है ।
दिखावा, पाखंड और सर्वश्रेष्ठ होने का अहंतोष करने की यह प्रणाली शायद खूद के लिये घातक सिद्ध होगी ; परंतु तब तक दूनिया के निरीह और निर्दोष जीवों को सहन करना होगा ...जो कि बहुत ही भयावह स्थिति है । ऐसे घटिया किस्म के लोगों के लिए दूनिया में तुरंत रोकथाम की व्यवस्था कायम करनी होगी ।
यह काम कोई एक देश या कौम नहीं है कर सकती बल्कि यह पुरे विश्व समुदाय को इकट्ठा होकर सर्वसम्मति से ही करनी होगी । एक दो देश अपने स्वार्थ में पडकर सच्ची नीतियों और सही और उम्दा इरादों का विरोध करें भी तो दूसरे देशों को #विवेकबुद्धि" से काम लेना होगा । वर्ना आज धर्म के लड रहें हैं ; कल जाति लडेगी; परसों देश और एक दिन स्वार्थ पूर्ति के लिए ही युद्ध होगा । #मानवता का चोला पहनकर आतंक फैलानेवालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए । 'जीयो और जीने' दो का सूत्र यादकर हमें दूनिया को एक ही परिवार ( वसुधैव कुटुम्बकम् ) मानकर चलना होगा । तभी "विश्व शांति'' बहाल होगी । दूःख, गरीबी, रोग शोक , अभाव - को दूर कर आनेवाली पीढियों के लिये अमन और सुख की अच्छी विरासत दी जा सकेगी ।
जय हिंद 🙏
धन्यवाद ।
© Bharat Tadvi