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जीवन - एक किताब , एक यात्रा
#जीवन- एक किताब , एक यात्रा

जीवन एक किताब है । हम जितना पढ़ते हैं , जितना भीतर उतरते हैं उतना ही जान पाते हैं । हर कोई अलग अलग चैप्टर में होता है , अलग अलग अध्यायों में होता है और जिसने पूरी किताब पढ़ ली हों या फिर आखरी पन्नों में हों वही पूरी कहानी समझ सकता है । जो पिछले पेज और पिछले अध्याय में हो वह आगे की दास्तां यकीं कर ही नहीं सकता और मानने का तो प्रश्न तबतक नहीं होता जबतक कि स्वयं सतत पढ़ते हुए उसी पेज पर न आ जाए और जब व्यक्ति उस पेज पर आता है जिसकी बातें पूरी पुस्तक पढ़ने वालों ने बताईं थीं और वह उस दिन मानी नहीं गईं थी तब यह अनुभव होता है कि बात तो ठीक कही गई थी । जब पुस्तक पूरी तरह पढ़ ली जाती हैं तो पढ़ने वाला अपने अनुभव से सबकुछ स्वीकार करता है । यही जीवन की सच्चाई है । हर कोई डिफरेंट पेज पर है और कहानी वहीं तक जान पाता है जहां तक पढ़ने वाला पहुंचा है । तब जाकर कई अस्तित्वों का पता चलता है जो पहले महज एक भ्रम था । ठीक वैसे जैसे जिसने कभी गुड़ न चखा हो और यात्रा के अंतिम पड़ाव पर गुड़ चख ले और पीछे लौटकर पीछे के यात्री जिसने कभी गुड़ न चखा हो उसका स्वाद वर्णन करे तो सारा श्रम व्यर्थ जाता है और " गुड़" भी कोई चीज है इसपर कोई यकीन कैसे करे! यह स्वाभाविक ही है । गुड़ का स्वाद तो वही जानें जिसने वास्तव में चखा हो अन्यथा कितने ही ग्रंथ , कितने ही प्रवचन "गुड़" और " गुड़ की मिठास" पर दिए जाएं सब व्यर्थ हो जाता है । गुड़ तो स्वयं चखने की चीज है तभी उसकी मिठास अनुभव की जा सकती है । जीवन एक यात्रा है , यह एक अध्य्यन है जिसे स्वयं पूरा करना होता है और तब जाकर असली स्वाद लिया जा सकता है अन्यथा किसी और द्वारा कही गई कहानी बस शब्दों में ही रह जाती है और उसका वास्तविक अर्थ कभी जाना ही नहीं जा सकता ।

(राजू दत्ता की कलम से ✍🏻)