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सौभाग्यवती
सुबह सात बजे ही घर में कोहराम मच गया । माँ माँ की चीख़ों से घर की दीवारें हिल गईं । आसपड़ोस के लोग भी उन चीखों को सुनकर दो कमरों के उस छोटे से घर में घुसने के लिए ठेलमठेल करने लगे । अरे क्या हुआ क्या हुआ .........

  ओहो सरला चाची खत्म हो गई ! लोग विस्मय से एक दूसरे को देख रहे थे ।

कल शाम तो इन्हें बाज़ार में देखा था । किसी ने कहा

रात में तो हमारे यहाँ दही जमाने के लिए जामन माँगने आईं थीं । एक और पड़ोसी बोला

अभी घण्टे भर पहले ही तो आँगन बुहार रही थीं , मैंने अपनी मुंडेर से देखा था जब मैं पौधों को पानी दे रही थी । किसी अन्य महिला ने कहा ।

एकदम से हुआ क्या इनको ? सब इस प्रकार की बातें कर रहे थे । तब उनके बेटे ने हिचकियाँ लेते हुए बताया क्या पता बाल्टी उठाकर नल के नीचे रखने जा रही थीं कि बीच में ही कलेजे पर हाथ रख कर धम्म से गिर पड़ीं । मैं गिरने की आवाज़ सुनकर दौड़कर गुसलखाने से बाहर आया तो धरती पर पड़ी छटपटा रही थीं । मुझे देखते ही बस ये बोली कि जा रही हूँ लल्ला और बसस्स ........
कहते हुए बेटा किशोर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा ।

पति राधेश्याम , जो कि लकवाग्रस्त होने के कारण  बिस्तर पर ही रहते थे , जीवनसंगिनी के यूँ अचानक मृत्यु का विश्वास ही नहीं कर पा रहे थेऔर आँखें फाड़े चारों ओर देख रहे थे ।

अब ज़रा सरला देवी के जीवन में झांक लेते हैं ।

सरला जी पैंसठ वर्षीया भली महिला थीं । ज़िन्दगी भर गृहस्थी सम्भालने में खटती रहीं । अच्छे खाते पीते घर की बेटी को किस्मत  बमुश्किल पेट भर सकने...