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लॉक डाउन
कभी मैं उसके पैरों की शोभा बढ़ाती थी पर आज मकड़ी का घर बनी हुई हूँI अब तो दो महीने होने को आए हैं... ना जाने कब इन मकड़ियों के जाल से मेरा पीछा छूटेगा I उसी कमरे के दूसरी तरफ से आवाज आयी कि चलो बहन कम से कम तुमने किसी को रहने के लिए आश्रय तो दिया है, मेरा तो उसकी बदन की खुशबू के बिना अब दम घुटने लगा है I अब एक - एक दिन काटना मुश्किल लग रहा है I ना जाने क्या हुआ होगा उस लड़की को जो हफ्ते दो हफ्ते में मुझे नहलाया करती थीI उसकी छुअन भी अब मुझे नसीब नहीं हो रहीI हो सकता है कि उसका कॉलेज कुछ दिनों के लिए बंद हो गया हो या फिर उसके घरवालों ने बाहर जाने पर पाबंदी लगा दिया हो I वैसे गर्मी की छुट्टियों का समय फिलहाल तो नहीं चल रहा I कहीं ऐसा ना हो कि अब वह इस दुनिया में रही ही ना हो I ऐसे ना बोलो बहन...इसी बीच वह लड़की किसी काम से कमरे के अंदर आई I उसकी नज़र मुझ पर आ पड़ी I वह खुद को रोक ना सकी और मुझ पर हाथ फेरते हुए बोली इस बंदी के वजह से "May Be My Shoes And Clothes Are Thinking That I Probably died" . यह सुनने के पश्चात हमदोनो ने एक दूसरे की तरफ राहत भरी गहरी सांसे भरते हुए देखा और हमारे मन में यह ख्याल आया कि चलो ये लड़की भी हमें उतना ही याद करती हैं जितना कि मैं उसके बदन क खुशबू को और तुम उसके कोमल पांव को...

✒️सुमित शांडिल्य