लॉक डाउन
कभी मैं उसके पैरों की शोभा बढ़ाती थी पर आज मकड़ी का घर बनी हुई हूँI अब तो दो महीने होने को आए हैं... ना जाने कब इन मकड़ियों के जाल से मेरा पीछा छूटेगा I उसी कमरे के दूसरी तरफ से आवाज आयी कि चलो बहन कम से कम तुमने किसी को रहने के लिए आश्रय तो दिया है, मेरा तो उसकी बदन की...