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दिल से दिल तक
हमारे गांव में एक पंडित जी हुआ करते थे उनके पास एक गाय थी जिसका सारा दूध वो बेच दिया करते थे ।
और कभी काल जो थोड़ा बहुत दूध बच जाया करता था उस दूध का पंडिताइन दही जमाती थी। उस दही को पंडित जी खान की वजह अपने मुंह के आसपास कुछ इस तरह से लगा लेते थे जैसे कि उन्होंने बहुत सारा दही खाया हो..! एक दिन संजोग से घर में कुछ काम था तो दादाजी ने मुझे पंडित जी के घर भेजा उन्हें बुलाने के लिए । मैं जब उनके घर गई तो क्या देखती हूं लगभग एक चम्मच के आसपास ही पंडित जी के थाली में दही होगा और उस दही को वो अपने हाथों से मुंह के चारों तरफ लगा रहे थे जैसे ही मैंने उनसे कहा पंडित जी दादाजी ने आपको बुलाया है ।मेरी आवाज सुनकर वो चौंक पड़े कुछ इस तरह जैसे कि उनकी चोरी पकड़ी गई हो। फिर उन्होंने मुझ से कहा अच्छा तुम चलो मैं आता हूं। जब मैंने दादाजी से कहा पंडित जी आ रहे हैं तो दादा जी ने मुझसे पूछा पंडित जी क्या कर रहे थे ..?तो मैंने कहा दही लग रहे थें।फिर दादाजी ने पूछा दही खा रहे थे कि लगा रहे थे....? फिर मैंने जो देखा वह सब दादा जी को कह सुनाया ....! मेरी बातें सुनकर दादाजी हंस पड़े और कहने लगे अच्छा तो ये बात है ...!
कुछ देर बाद जब पंडित जी दलान पर आए तो दादाजी ने उनसे कहा क्यों पंडित जी लगता है आजकल पंडिताइन आपकी बहुत खातिरदारी कर रही है। जी यजमान..!
क्या बताएं हम आपको पंडिताइन बहुत ध्यान रखती है मेरा।इतना दही पड़ोस देती है थाली में कि मैं खाते-खाते थक जाता हूं..!! जिस पर दादाजी ने कहा
जी जी हां अभी-अभी बताया मेरी पोती ने मुझे .......!
जिसको सुनकर पंडित जी छेप गए...!!
किरण