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एक कठिन रात
कुछ महीने पहले, एक दिन मैं एग्जाम देकर अलवर सेआ रहा था! इस दिन मेरी बीए की एग्जाम थी! मेरी एग्जाम शाम 3:00 बजे से 5:00 बजे तक थी आता है मुझे वहां से 6:00  तक आना पड़ा! इस दिन ट्रेन थी नहीं, इसलिए मैं बस से आ रहा था ! बस से करीब मुझे 2 घंटे का टाइम लगना था! अतः बहुत रात हो गई मैं घर पहुंच नहीं पा रहा था! एक और ठंड इतनी बढ़ चुकी थी कि मैं सह भी नहीं कर पा रहा था! इस समय हमारे पास कोई गाड़ी घोड़ा भी नहीं था! कि जिससे टाईम से घर तक पहुँच पाऊँ!अतः हुआ यूँ कि, रात के करीब 8 बज चुके थे!मैं भयभीत था कि इतनी रात को कहाँ जाउँ, मेरा तो यहाँ कोई जानकार भी नहीं है,जिसके घर मैं रूक सकुँ ! रात बहुत ज्यादा हो रही थी,अत: मैंने राजगढ़ स्टेशन रुकने का निर्णय लिया! क्योंकि मैंने सोचा, यदि मैं कहीं गया तो, मेरे लिए जान का खतरा भी हो सकता है! क्योंकि आज कल कोई भरोसा नहीं है क्योंकि रात में चौर - उचक्के जो डोलते है! तब जैसे ही बस रुकी मैं राजगढ़ स्टेशन पर चला गया! स्टेशन पर भी कोई नहीं था, उन दो रेलवे कर्मचारियों के, जो भी सर्दी के कारण अंदर कमरे में ही बैठे थे! मैं स्टेशन पर अकेला बाहर बैठा था ! मैं बढ़ती रात की सर्दी से कांप रहा था!

वैसे यहाँ स्टेशन पर कुछ आसपास रहने वाले लोग चहलकदमी कर रहे थे! मैंने सबसे पहले तो स्टेशन पर खाना खाया! परंतु खाने में भी मेरे पास दो सुबह की सुखी रोटी थी ! और साथ में कुछ खाने को कुछ सब्जी भी नही थी! अतः अब रात भी इतनी थी कि मैं किसी दुकान पर भी नहीं जा सकता था! क्योंकि अब वे भी बंद हो चुकी थी! अतः मैंने रोटी तो खाली!
परंतु उन रात्रि के काले बदबूदार कीड़ों के कारण अब नींद भी नहीं आ रही थी! अतः कभी मैं स्टेशन के आसपास सवेरे का इंतजार करता! तो कभी मन मारकर सोता था! परंतु तब भी नहीं सो पाया! अब बैठे -बैठे स्टेशन की घड़ी की सुई को देखता रहा, कि कितना समय और है ।
अब तक कई ट्रेनें यहाँ से निकल चुकी थी! मैं जैसे-तैसे रात काट रहा था। कभी मैं स्टेशन के बाहर रोड़ पर आ जाता, तो कभी अंदर जा बैठता।अब धीरे -धीरे भोर हो गयी थी! बगल में सब में दुकानें भी खुल चुकी थी! अंततोगत्वा मैं उस दिन की इस कड़ी परेशानी से निकल कर घर आ पाया।

© jitendra kumar sarkar